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(३४) जीव चारगतिमां जन्म मरणे देवता, मनुज्य, तिर्यच, अने नारकीरुप नवा नवा भव धारण करे छे, माटे अनित्य कहीए. तथा व्यवहारनये पुद्गल द्रव्यना खंध पण सर्व अनित्य जाणवा, कारण के पुद्गल द्रव्यना खंध बने छे, अने पाछा विखरे छे, माटे अनित्य जाणवा. द्रव्यास्तिकायना मते जीव असंख्यात प्रदेशी नित्य सदाकाल शाश्वतो छे, अने अशुद्ध अनित्य पर्याये जीव अशाश्वतो जाणवो. कारणके अशुद्ध अनित्य पोये जीव चार गतिरुप संसारमा उत्पाद व्ययरुप पलटण स्वभावे वर्ते छे. ते आवी रीतमनुष्य भवना पर्यानो व्यय थयो अने देवताना भवना पोयनो उत्पाद थयो.वळी तिर्यंच भवना पर्यायनो व्यय थयो, अने म
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