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सर्वार्थसिद्धि
पृ०-५०
पृ०-५०
द्वितीय संस्करण क्षायोपशमिक पर्याप्त किन्तु अयोगी सम्यग्दृष्टि जीव
16-35 17-30 19-13
17-3 17-32
प्रस्तुत संस्करण क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन पर्याप्त किन्तु अपगतवेदी क्षायिक सम्यग्दृष्टि और कृतकृत्यवेदकसम्यग्दृष्टि जीव सन्ति । अवधिदर्शने असंयतसम्यग्दृष्ट्यादीनि क्षीणकषायान्तानि सन्ति
19-15
सन्ति
13-10
23-13
सासादन सम्यग्दृष्टि से लेकर संयतासंयत तक पुरुषवेदवाले जीवों की वही संख्या है जो सामान्यसे कही है। प्रमत्त. संयतसे लेकर अनिवृत्तिअष्टौ भागा वा चतुर्दशभागा देशोना: तियंचोंका कम एकसौ बत्तीस केवल क्षयोपशम
26-28 33-2 35-12 46-33 66-25 72-27 77-11 88-16
27-2 33-2 35-21 47-27 68-13 74-19 78-23
देशको विषय देशघाती स्पर्धकोंका उदय
उदय का अभाव उनकी उदीरणा योगप्रवत्तिके उदयसे अनुरंजित
112-14 112-16
90-17 114-14 114-16
सासादन सम्यग्दृष्टि से लेकर बनिवृत्ति- अष्टौ द्वादश चतुर्दश भागा वा देशोना: पंचेन्द्रियों का कम दो ख्यासठ केवल बढ़ी हुई क्षयोपशम रहित होकर विषयको ग्रहण करता है देश में स्थित पदार्थको विषय देशघाती स्पर्धकोंका उदय रहते हुए सर्वधाती स्पर्धकोंका उदयास्वरूपसे उदय न होना उदयावलिसे ऊपरके उन निषेकोंकी योगप्रवृत्ति कषायोंके उदय से अनुरंजित होती रही। समाधान--यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि आत्मा के जानकी जाननेके सम्मुख हुई पर्यायका भाव है। ये सब मिलाकर नौ योनियां जानना चाहिए। मध्यमें नाभिके समान मेरु शब्द मध्यभागका समुच्चय करने के लिए लम्बा है तथा उत्तर और दक्षिण पचिसो आगेके क्षेत्र और पर्वतोंका विस्तार
115-15
समाधान--आत्माके
114-17
116-23
ज्ञानकी पर्यायका
126-12
128-16
भाव है। शंका
135-21
137-24 157-26
मध्य में मेरु शब्द समुच्चय वाची
154-19 157-21
160-25
लम्बा है और पाँचसो
157-32
161-16
आगे के पर्वत और क्षेत्रोंका विस्तार
162-15
कम से
165-24
रहने से है यह अनुमान किया
165-32
169-24
स्थिति है और
192-36
रहने से यह प्रासाद दुमंजिला है यह समझा स्थिति है, विजयादिकमें तेतीस सामरोपम उत्कृष्ट स्थिति है और स्पमिति
197-24 206-2
रूपमति
200-13
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