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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
भावके अनुसार पुनः वही सत्य, वही निरापद विजयमार्ग तात्कालीन जनताको दर्शाया था । इन तीर्थंकरोंमेंसे वीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथनीके तीर्थकालमें श्री रामचन्द्रनी और लक्ष्मणनी हुये थे। बाईसवें तीकर नेमिनाथनीके समकालीन श्री कृष्णनी थे; जिनके साथ श्री नेमिनाथनीकी ऐतिहासिकताको विद्वान स्वीकार करने लगे हैं;" क्योंकि भगवान पार्श्वनाथजीसे पहले हुये तीर्थङ्करोंके आस त्वको प्रमाणित करनेके लिये स्पष्ट ऐतिहासिक प्रमाण उपलर नहीं हैं। किन्तु तो भी जैन पुराणोंके कथनसे एवं आजसे करीब ढ ई तीन हजार वर्ष पहले बने हुये पाषाण अवशेषों अथच शिल लेखों व बौद्ध ग्रन्थों के उल्लेखोंसे शेष जैन तीर्थङ्करों की प्राचीन मान्यता और फलतः उनके अस्तित्वका पता चलता है । तेईसवें तीर्थङ्का भी पाश्वनाथनाको अब हरकोई एक ऐतिहासिक महापुरुष मानना है और अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीरजी के जीवनकालसे नैनधर्म का एक प्रामाणिक इतिहास हमें मिल जाता है । यह मानी हुई बात है कि धर्मात्मा विना धर्मका मस्तत्व
___ नहीं रह सक्ता है। अतएव किसी धर्मका इति. जैन इतिहास।
हास उसके माननेवालोंका पूर्व-परिचय मात्र कहा जा मक्ता है । जैनधर्मके प्रातिपालक लोग जैन कहलाते हैं;
१-इपीग्रेफिया इन्डिका भा० १ पृ. ३८९ व सक्षद्राए इ० भूमिका पृ० ४ । २-मथुग कंकाली टीलेका प्राचीन जैन स्तूप आदि । ३-हाथी. गुफाका शिलालेख-जविओसो. भा० ३ पृ० ४२६-४९. । ४-भ. महावीर और म० बुद्ध पृ. ५१ व ला. म. पृ. ३० । ५-हमारा भगवान पार्श्वनाथ' की भूमिका।
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