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इनका स्थान जैसा जैन पुगणोंमें है वैसा हिन्दू पुराणोंमें भी पाया जाता है। वहाँ भी वे इस सृष्टिके आदिमें स्वयंभू मनुसे पांचवी पीढीमें हुए बतलाये गये हैं और वे ईशके अवतार गिने जाते हैं। उनके द्वाग धर्मका जैसा प्रचार हुआ उसका भी वहां वर्णन है। जैन पुराणों में कहा गया है कि ऋषभदेवने अपनी पुत्री 'ब्राह्मी' के लिए लेखनकलाका आविष्कार किया । उन्हींके नामपरसे इस आविष्कृत लिपिका नाम 'ब्राह्मी लिपि' पडा । इतिहासज्ञ ब्राह्मी लिपिके नामसे भलीभांति परिचित हैं । आधुनिक नागरी लिपिका यही प्राचीन नाम है । ऋषभदेवके ज्येष्ठ पुत्रका नाम भरत था जो आदि चक्रवर्ती हुए। भरत चक्रवर्ती का नाम हिन्दू पुगणोंमें भी पाया जाता है, यद्यपि उनके वंशका वर्णन वहाँ कुछ भिन्न है। इन्हीं भरतके नामसे यह क्षेत्र भारतवर्ष कहलाया।
हिन्दू पुगणोंमें ऋषभदेवके पश्चात् होनेवाले तीर्थंकरोंका उल्लेख अभीतक नहीं पाया गया, पर जैन ग्रन्थोंमें उन सब पुरुषों का चरित्र वर्णित है जिन्होंने समय २ पर ऋषभदेव द्वारा स्थापित धर्मका पुनरुद्धार किया। ज्यों २ हम ऐतिहासिक कालके समीप आते जाते हैं क्यों २ जैनधर्मके उद्धारकोंका परिचय अनेक प्रमाणोंसे सिद्ध होने लगता है । २२ वें तीर्थकर नेमिनाथके विषयकी अनेक घटनाओंका समर्थन हिन्दू पुगणोंसे सिद्ध होता है । तेईसवें तीर्थकर णर्श्वनाथ तो अब ऐतिहासिक व्यक्ति माने ही जाने लगे हैं, इनके जीवन के सम्बन्धमें नागवंशी राजाओंका उल्लेख आता है। इस वंशके विषय पर ऐतिहासिक प्रकाश पडना प्रारम्भ हुआ है । चौवीसवे तीर्थंकर श्रीमहावीरस्वामीका समय तो जैन इतिहासकी कुजी ही है । वैज्ञानिक इतिहासने धीरे धीरे महावीरकी ऐतिहासिकता स्वीकार कर क्रमसे पार्श्वनाथ तक जैनधर्मकी शृखला ला जोडी है। आश्चर्य नहीं, इसी प्रकार वैज्ञानिक शोधसे धीरे २ अन्य तीर्थकरोंके समयों पर भी प्रकाश पडे। जन भूगोल ।
भारतवर्षका जो भूगोल सम्बन्धी परिचय जैन पुराणों में दिया है वह भी स्थूल रूपसे आजकलके ज्ञानके अनुकूल ही है। भरतक्षेत्र हिमवत् पर्वतसे दक्षिणकी ओर स्थित है। इसकी दो मुख्य नदियां हैं-गंगा और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com