Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 112
________________ ARNAMEAnwanna daweWANMONNNNNNAMANAND चतुर्थ परिच्छेदं । - [९७ रामनगर जिला बरेलीमें ) दुर्घर तपश्चरण कर रहे थे, उस समय इस दुष्टने अपने पूर्व वैरके कारण घोर कष्ट देना प्रारम्भ किये थे, परन्तु सपैयुगलके जीव धरणेन्द्र और पद्मावतीने भगवानका यह कष्ट निवारण किया था। इससे प्रगट है कि भगवान पार्श्वनाथके समयसे ही कुतापसी वानप्रस्थों आदिका बाहुल्य था और उनका मिथ्या हट भी बड़ा जबरदस्त था। इस उपसर्गके दूर होनेपर भगवान पार्श्वनाथने चार घातिया कोपर विजय प्राप्त करली थी और आप सर्वज्ञ होगए थे। यह चैत्र कृष्ण चतुर्थीका दिन था । पश्चात् भगवानने समस्त आर्यखण्डमें विहार किया था और जैनधर्मका प्रचार किया था। दीक्षा ग्रहण करनेके बाद आपने दो • दिनका उपवास करके काश्यकृतपुरमें धनदत्तके यहां प्रथम आहार लिया था। फिर चार मास संयमी रहे थे तब केवलज्ञानी अथवा सर्वज्ञ हुए थे। सर्वज्ञताकी अवस्थामें आपने भव्यजीवोंको प्रतिबुद्ध किया था और धर्ममार्गपर लगाया था। पश्चात् श्रावण सुदी सप्तमीको सम्मेदशिखरसे मोक्षको प्राप्त किया था। इस ही कारण सम्मेदशिखरको आजकल लोग “ पारसनाथ हिल" कहते हैं। आपके भी वह सर्व विशेष बातें हुई थीं जो प्रत्येक तीर्थकरके होती हैं । आपके समयमें ही अंतिम सार्वभौम राजा चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त हुए थे, जिनका उल्लेख बौद्ध ग्रंथोंमें भी मिलता है। भगवान पार्श्वनाथके मोक्ष जानके बाद आपकी शिष्य परम्परा द्वारा धर्मका मार्ग प्रवर्तता रहा था। इनके मुख्य गणधर स्वयंभू थे। परन्तु भगवान महावीरके जन्मके कुछ पहिलेसे वानप्रस्थादि मतोंकी फिरसे प्रधानता होगई थी। भाजीविक, अचेलक आदि नये नये ७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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