Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 115
________________ १..] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग। ANTARVAN.indanvideovasanawwwwindin तीनसौ, कुंथुनाथके समवशरणमें साठ हजार साडेतीनसौ। अरनाथके समवशरणमें साठ हजार, मल्लिनाथके समवशरणमें पचपन हजार, मुनिसुव्रतनाथके समवशरणमें पचासहजार और नमिनाथके समवशरणमें पैतालीस हजार थी। तथा नेमिनाथके समवशरणमें चालीस हजार और पार्श्वनाथके समवशरणमें अड़तालीस हजार और भगवान महावीरके समवशरणमें चौवीस हजार थी।' * भगवान ऋषभदेवके प्रधान गणधर वृषभसेन थे, अजितनाथके सिंहसेन, संभवनाथके चारुदत्त, अभिनन्दनके वज्र, सुमतिनाथके चमर, पद्मप्रभके वज्रचमर, सुपार्श्वनाथके बलि, चंद्रप्रभके दत्तक, “पुष्पदन्तके वैदर्भ, शीतलके अनगार, श्रेयांसके कुन्थु, वासुपूज्यके सुधर्म, विमलके मंदरार्य, अनन्तके जय, धर्मके अरिष्टसेन, शांतिके चक्रायुद्ध, कुन्थुके स्वयंभु, अरके कुंथु, मलिके विशाखाचार्य, मुनिसुवृतके मल्लि, नमिके सोमक, नेमिके वरदत्त, पार्श्वनाथके स्वयंभू और महावीरके इन्द्रभूति (गौतम) नामक गणधर थे। ये समस्त गणधर सातों प्रकारकी ऋद्धियोंके धारक और श्रुतज्ञानके पारगामी थे। जिस समय भ० महावीर दीक्षित हुए थे उस समय उनके साथमें तीनसौ राजा दीक्षित हुए थे। पार्श्वनाथके साथमें छैसौ छै. मल्लिके साथ भी छैसौ छै, वासुपूज्यके साथ छैसौ, ऋषभके साथ चार हजार और शेष तीर्थंकरों के साथ हजार हजार राजा दीक्षित हुए थे। इस प्रकार हमारा तीर्थकरोंका वर्णन पूर्ण होता है, केवल अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीरका वर्णन करना अवशेष रह जाता है। * हरिवंशपुराण सर्ग ६० श्लोक ४३२-४१। x हरिवंशपुराण मग ६० श्लोक ३४५-५१ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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