Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 113
________________ ९८] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग | सम्प्रदाय निकल खड़े हुए थे, जिनकी बहुतसी बातें जैनधर्मके आचार नियमोंसे मिलती थी। इस प्रकार भगवान ऋषभनाथ के बादके तीर्थकरों और प्रख्यात महापुरुषों का वर्णन है। अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीरके वर्णन से हमारा दूसरा भाग प्रारम्भ होता है । इस उक्त वर्णन से हमको यह भी ज्ञात हो जाता है कि भगवान ऋषभनाथ के समय से ही उनके साथ दीक्षित राजा अज्ञानता के कारण घर्मभ्रष्ट हो गए थे. एवं कुलिंग ( अपने मनोनुकूल ) मतका आश्रय ले गए थे। और सम्राट् भरतने जो विशेष उत्तम व्रती श्रावकका एक अलग ब्राह्मण वर्ण स्थापित किया था, वह अगाड़ी चलकर भगवान ऋषभनाथके कहे मुताबिक दशवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथके तीर्थकालमें शिथिलाचारी होकर आर्ष प्रणीत चार दानोंके वितरिक्ति में घोड़ा, हाथी आदि आदि दश कुदानोंको लेने लग गया था और अपने इस विधानकी पुष्टि के लिए वह ग्रन्थ भी रचने लगा था । पीछे इसी ब्राह्मण वर्ण द्वारा भगवान मुनिसुव्रतनाथके मोक्ष चले जानेके बाद उन अनार्ष ग्रन्थोंमें हिंसावृत्तिका विधान करके यज्ञकाण्डका प्रचार किया गया था, जैसे कि पहिले प्रस्तावना में दिखाया गया है । इस प्रकार क्रम कर ब्राह्मण वर्णने अपने ग्रन्थोंका संकलन किया और अपने मतका प्रचार किया । इस व्याख्याकी पुष्टिमें आजकल के प्रख्यात् विद्वानोंकी मानी हुई बात पर्याप्त है कि हिन्दू धर्म सदैव समयानुसार अपना रंगढंग बदलता रहा है । (देखो Practical Path) अस्तु, दूसरे भाग में प्रवेश करने के पहिले हम आर्ष वेदों और आर्षवैदिक धर्मका मी दिग्दर्शन कर लेंगे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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