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षष्ठम परिच्छेद।
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प्रतिदिन उपासक अपने घरसे गंध, पुष्प, अक्षत आदि पूजा सामग्री ले जाकर जिनदेवकी पूजा करता है, अथवा जिनमंदिर आदि बनवाता है। जिनमंदिर तथा पाठशाला आदिमें पूजा स्वाध्याय तथा अध्ययन आदिके लिये भक्तिपूर्वक राजनीतिके अनुसार सनद आदि लिखकर देता है। दूसरा आष्टाह्निक और ऐंद्रध्वज कहा गया है। नंदीश्वरपर्वके दिनोंमें अर्थात् प्रतिवर्ष आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन महीनेमें शुक्ल पक्षकी अष्टमीसे पौर्णिमा तक अन्तके आठ दिनोंमें जो अनेक भव्यजन मिलकर अरहन्तदेवकी पूजा करते हैं उसे आष्टाहिक यज्ञ कहते हैं तथा जो इन्द्र प्रतीन्द्र और सामानिक आदि देवों के द्वारा एक विशेष जिन पूजा की जाती है उसे ऐंद्रध्वजमह कहते हैं ।
___अनेक शूरवीर आदि लोगोंने जिनपर मुकुट बांधा हो उन्हें मुकुटबद्ध राजा कहते हैं। ऐसे मुकुटबद्ध राजाओंके द्वारा भक्तिपूर्वक जो जिनपूजा की जाती है उसे चतुर्मुख, सर्वतोभद्र अथवा महामह कहते हैं । यह यज्ञ प्राणिमात्रका कल्याण करनेवाला है इसलिये इसका नाम सर्वतोभद्र है। चतुर्मुख अर्थात् चार दरवाजेवाले मण्डपमें किया जाता है इसलिये चतुर्मुख कहलाता है। और अष्टाहिकाकी अपेक्षा बड़ा है इसलिये इसे महामह कहते हैं । इस प्रकार इसके तीनों ही नाम सार्थक हैं । मुकुटबद्ध राजा लोग भक्तिपूर्वक ही इसे करते हैं, चक्रवर्तीकी आज्ञा अथवा भयसे नहीं करते हैं। यह यज्ञ भी कल्पवृक्षके समान है। अन्तर केवल इतना है कि कल्पवृक्षमें संसारभरको इच्छानुसार दान आदि दिया जाता है। याचकोंकी इच्छानुसार संसारभरके लोगोंके मनोरथोंको पूर्ण कर चक्रवर्ती राजाओंके द्वारा जो अरहन्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com