Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 145
________________ १३०] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग । कितनी उन्नति उसमें प्राप्त कर ली थी। जो स्त्रियां भी अपने संसा. रमें फंसी हुई बहिनों को धर्मका मार्ग बतलाती थीं, उनकी सम्भाल रखती थीं । त्रियोंको दायभागमें भी हिस्सा मिला करता था ।* उस समयके आर्योके यथार्थ महाकाव्य म्यारहवें कल्याणवाद पूर्वमें कथित थे और वे उन लोगोंको कंठस्थ याद थे। यह काव्य महाभारत और रामायणसे कहीं विस्तृत और महत्वपूर्ण थे। ज्यों ज्यों समय बढ़ता गया, त्यों त्यों मतमतान्तरोंके बढ़नेसे प्राकृत आर्ष, आर्य सभ्यता (जैन सभ्यता )में भी अन्तर पड़ता गया। परन्तु विश्वस्ततया वह भगवान शीतलनाथके समय तक अपने वास्तविक रूपमें मौजूद थी। पश्चात् राज्यनैतिक सामाजिक आदि व्यवस्थाओं में रूपान्तर होने लगे और भगवान महावीरके समयमें आकर वह विशेष मिश्रित होगई, क्योंकि समयानुसार द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावका प्रभाव इस दरमियानमें उसपर अवश्य पड़ा था। इसी जैन सभ्यताके चमकते हुए रत्न श्री तीर्थकर भगवानके अतिरिक्त नाभि, श्रेयांम, बाहुबली, भरत, रामचन्द्र, हनूमान, गवण, कृष्ण, भीम, महादेव आदि नररत्न और ब्राह्मी, चंदनबाला, राजुलदेवी, कौशल्या, मृगावती, सीता, सुभद्रा, द्रौपदी, सुलसा, कुंती, शीलवती. दमयंती, प्रभावती, शिवा आदि महिलामणि थे। यदि इस कालके इन महत् रत्नोंको यहां प्रकाशित किया जाय, तो मेरे विचारसे इस * जैन, सभ्यताके विषयमें विशेष जाननेके लिये “ जैन कलचर" (JAIN CULTURE ) नामक पुस्तकमें देखो। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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