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संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग।
श्वेतपटधारी उदासीन श्रावक रहते थे जो ११ प्रतिमाओंका अभ्यास किया करते थे। और इसी प्रकार श्राविका संघमें व्रती श्राविका रहती थीं। सामान्य जैनी गृहस्थ इनसे भिन्न थे। उनकी गणना तीर्थकरों के इस साधु संघमें अलग थी। यह पूर्णरूपमें धर्म पालनका अभ्यास करते थे। आजकलके अथवा वैदिक कालके वानप्रस्थादिकी तरह यह लोग नहीं थे। इनकी उत्कृष्टता विशेष अनुकरणीय थी। इसप्रकार संक्षिप्त रूपमें भावान पार्श्वनाथके समय तकके जैन इतिहासका हम पाठ कर लेते हैं और इसके साथ हमारा प्रथम भाग समाप्त होता है। इस ही भागके इतिहासको यदि पूर्ण विशुद्धरूपसे लिखा जाय तो मेरे खयालसे वह इस पुस्तकसे चौगुनी होजावे। ऐसा विशद इतिहास भी यथासमय पाठकोंके हाथोंतक पहुंचेगा। आशा है इस प्रथम भागसे पाठक समुचित ज्ञान प्राप्त करेंगे। इति शम् ॥
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