Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 114
________________ . चतुर्थ परिच्छेद।..:: [९१ तीर्थकरोंके उक्त वर्णनको पूर्ण करनेके लिए निम्न बातें और ध्यान रखनेके लिए लिखी जाती हैं। अर्थात् “भगवान ऋषभदेवके कुल यति चौरासी हजार थे, अजितके एक लाख, सम्भवनाथके दो लाख, अभिनन्दनके तीन लाख, सुमतिके तीन लाख वीस हजार, पद्मप्रभके तीन लाख तीस हजार, चन्द्रप्रभके ढाई लाख, पुष्पदन्तके दो लाख, शीतलनाथके एक लाख, श्रेयांसनाथके चौरासी हजार, चासुपूज्यके बहत्तर हजार, विमलनाथके अड़सठ हजार, अनन्तनाथके च्यासठ हजार. धर्मनाथके चौसठ हजार, शान्तिनाथके बासठ हजार, कुन्थुनाथके साठ हजार, अरहनाथके पचास हजार, मल्लिनाथके चालीस हजार, मुनिसुव्रतके तीस हजार, नमिनाथके बीस हजार. नेमिनाथके अठारह हजार, पार्श्वनाथके सोलह हजार और महावीरके चौदह हजार थे।"* ऋषभदेवके समवशरणमें तीन लाख पचास हजार आर्यिकाएं थीं। अजितनाथके समवशरणमें तीन लाख वीस हजार, सम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ इन तीन तीर्थंकरों में हरएक समवशरणमें तीन २ लाख तीस २ हजार, पद्मप्रभके समवशरणमें चार लाख वीस हजार, मुपाश्वनाथके समवशरणमें तीन लाख तीस हजार, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त और शीतलनाथमें प्रत्येकके समवशरणमें तीन२ लाख अस्सी२ हजार, श्रेयांसनाथके समवशरणमें एक लाख वीस हजार. वासुपूज्यके समवशरणमें एक लाख छै हजार, विमलनाथके समवशरणमें एक लाख तीन हजार, अनन्तनाथके समवशरणमें एक लाख आठ हजार, धर्मनाथके समवशरणमें बासट हजार चारसौ, शांतिनाथके समवशरणमें साठ हजार * हरि० पु० सर्ग ६.० श्लोक ३५३-५६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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