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" पंचम परिच्छेद । [१०६ प्रगट करता है। इसके १,००,००,००६ मध्यमपद होते हैं।
(७) आत्मप्रवाद पूर्वमें निश्चय और व्यवहारनयोंकी अपेक्षा आत्माके कर्मों के कर्ता और भोक्तापनेका विवरण होता है। एवं आत्मासम्बंधी अन्य विशद बातोंका उल्लेख होता है। इसमें २६,००,००० मध्यमपद होते हैं।
(८) कर्मप्रवाद पूर्वमें कर्मकी विविध दशाओंका वर्णन है जैसे बंध, सत्ता, उदय, उदीरणा, अपकर्षण आदि। इसके १,८०,००,००० मध्यमपद हैं।
(९) प्रत्याख्यान पूर्वमें उन वस्तुओंका वर्णन है जिनको मनुष्यको सदैवके लिये अथवा किसी खास समयके लिये अपने शरीर बल (संहनन) आदिकी अपेक्षा त्याग करना चाहिये। एवं ५ समिति, ३ गुप्ति आदिका भी वर्णन है। इसके ८४,००,००० मध्यमपद होते हैं।
(१०) विद्यानुवाद पूर्वमें ७०० सामान्य विद्याओंका कथन है जैसे शकुन विद्या आदि और ५०० मुख्य विद्याओंका, जिनका प्रारम्भ ज्योतिष विद्यासे होता है। इसमें १,१०,००,००० मध्यम पद होते हैं।
(११) कल्याणवाद पूर्वमें तीर्थङ्करों, चक्रधरों, वासुदेवों आदिके जीवनमें घटित विशेष महोत्सवों (कल्याणकों) का एवं १६ प्रकारकी भावनाओंका, जिनसे आत्मा तीर्थकरपदको प्राप्त होता है, और नक्षत्र एवं सूर्य, चक्रादिके प्रभावका वर्णन है। इसमें २६,००,००० मध्यमपद होते हैं।
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