Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 125
________________ ११० ] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग | (१२) प्राणवाद पूर्व में ८ प्रकारकी औषधिविद्या, भूत प्रेतों- कृत पीड़ाओंके निवारणकी विद्या आदिका वर्णन है । इसमें १३,००,००,००० मध्यमपद होते हैं। (१३) क्रियाविशाल पूर्व में गानविद्या, काव्य, अलंकार, ७२ कला, आदि एवं स्त्रियोंकी ६४ कला और उनकी ६४ क्रियाओं तथैव भगवदुपासना आदि विविध क्रियाओंका वर्णन है । इसके ९,००,००,०० मध्यमपद होते हैं। (१४) त्रिलोकबिन्दुसार पूर्व है । इसमें तीनों लोक, २६ परिक्रमाओं, ८, व्यवहार आदिका एवं मोक्ष प्राप्तिके मार्गका और उसके प्राप्त होने पर सुख और शान्तिकी अवस्थाका वर्णन है । इसमें १२,५०,००,०० मध्यम पद हैं। ५ चूलिका: (१) जलगता चूलिका में मंत्रों, आहुति आदिसे पानीको रोकने, पानी में चलने, अग्निको रोकने और अग्निमें घुसने आदिका वर्णन है इसमें २,०९,८९,२०० मध्यम पद हैं । 1 (२) स्थलगता चूलिका में उन मंत्रों और आहुतियों का वर्णन है जिनके द्वारा मेरुपर्वत एवं अन्य देशोंमें जानेका एवं जल्दी चलने आदिका वर्णन है । इसके २,०९,८९,९०० मध्यम पद हैं । (३) मायागता चूलिका में हाथसे करिश्मे आदि दिखाने की क्रियाओं एवं मंत्रों का विवरण है। इसमें भी २,०९,८९.२००. - मध्यम पद V हैं I (४) रूपगता चूलिका में उन क्रियाओंका वर्णन है जिनके www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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