Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 131
________________ ११६] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग । इनको ही पुण्य और पापके मिलानेसे (७+२=९) नौ पदार्थ कहे जाते हैं । जगत अनादि निधन है। इसको कभी किसीने उत्पन्न नहीं किया है । इसमें दो प्रकारके पदार्थ पाए जाते हैं-जीव और अजीव । अजीवमें कई पदार्थ सम्मिलित हैं, जैसे-आकाश, काल, पुद्गल आदि । परन्तु उन सबमें जीव और पुद्गल ही मुख्य हैं। जीव अनन्त. हैं और पुद्गल परमाणुओंका समुदाय है । जगतके विविध चक्र परिभ्रमण इन जीव और पुद्गलके आपसी मिलावके फलस्वरूप हैं, जो खास २ प्राकृतिक नियमोंपर आधारित हैं । संसारी आत्मायें पुद्गलसे सम्बंधित हैं जिसके कारण उनके स्वाभाविक गुण परिमाणमें ढक गये हैं एवं निस्तेज हो गए हैं। ___ स्वाभाविक गुणोंका इस प्रकार दब जाना और मन्द पड़ जाना उस पुद्गलकी तौल और परिमाणपर निर्भर है जो प्रत्येक जीवके साथ लगा हुआ है। पुद्गलसे पूर्ण छुटकारा पा लेनेका नाम मोक्ष है, जिसके प्राप्त होनेपर जीवके स्वाभाविक गुण जो मन्द और निस्तेज होगये थे फिर नये सिरेसे पूर्ण रूपेण प्रकाशमान (उदित) हो जाते हैं । शुद्ध जीवके स्वाभाविक गुणोंमें-(१) सर्वज्ञता, (२) आनन्द, (३) और अमरत्व शामिल हैं; इसी कारण प्रत्येक मुक्त जीव सर्वज्ञ, आनन्दसे भरपूर और अमर होजाता है। कारण कि उस समय उसके साथ पुद्गल नहीं होता है। इस कारणसे ही प्रत्येक मुक्त जीव परमात्मा कहलाता है। परमात्मा जगतके सबसे ऊँचे भागपर जिसको सिद्ध-शिला कहते हैं, रहते हैं, जहांसे गिरकर ( च्युत होकर ) या निकलकर फिर कभी वह सांसारिक परिभ्रमण और दुःखोंमें नहीं पड़ते हैं। शेषके, अनन्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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