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संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग।
द्रव्यानुयोग-धवल, जयधवल, महाधवल, (ताड़पत्र पर हस्तलिखित केवल मूडबिद्रीमें थे, जो अब हिन्दी टीका सहित क्रमशः छप रहे हैं। ) और गोम्मटसारजी, तत्वार्थसूत्रजी। तत्वार्थसूत्रजी दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों संप्रदायोंको मान्य हैं। इसलिये वास्तवमें यह 'जैन बाइबल' कहा जा सकता है।
चरणानुयोग-नियमसार, रत्नकरण्ड श्रावकाचार आदि । कर्णानुयोग-त्रिलोकप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप्रज्ञति, त्रिलोकसार आदि । प्रथमानुयोग-महापुराण, हरिवंशपुराण, पद्मपुराण आदि । इस प्रकार यह आर्षवेद ( जैनवाणी) का विवरण है।
षष्ठम परिच्छेद । आर्ष वैदिक धर्म अर्थात् जैनधर्म
और उसकी सभ्यता । अति प्राचीनकालमें आर्य लोगों का धर्म वही था जिसका उपदेश आर्षवेद-श्रुत जैनवाणीमें मौजूद था और जो अब जैनियोंके आर्ष ग्रन्थों में मिलता है । जैनियोंके वर्तमानमें उपलब्ध आर्ष आचार्य ग्रंथोंका विषय लुप्तप्रायः श्रुनका एक सत्यांश है। इसलिए उनकी यथार्थतामें कुछ संशय नहीं रहता। उसपर, उनमें वर्णित विषय बुद्धिग्राह्य, वैज्ञानिक सत्य हैं। यद्यपि हम देख चुके हैं कि यथार्थ ईश्व
* इस विषयमें जर्मनीक प्रसिद्ध विद्वान मि० जॉन हर्टल कहते है कि " भारतीय सभ्यताका इतिहास लिखनेके लिए जैन कथाएं -हुत ही अमूल्य सामग्री है। " प्रसिद्ध भारतीय विद्वान स्वर्गीय डॉ. सतीश्चन्द्र
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