Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 127
________________ ११२ ] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथमं भाग । मंदिरों को तीन शिरोनति, तीन प्रदक्षिणा, १२ दफे नमस्कार आदिकी क्रियाओंका पूर्ण विवरण है । ( ७ ) दशकालिक प्रकीर्णकमें चारित्रके नियमोंका एवं मुनियोंके भोजनोंकी शुद्धताका वर्णन है । ( ८ ) उत्तराध्ययन प्रकीर्णक में साधुके चार प्रकारके उपसर्ग और २२ परीषहका एवं उनके फलका विवरण कहा है। ( ९ ) कल्पव्यवहार प्रकीर्णक में मुनियोंकी यथार्थ क्रियाओंका और अयथार्थ क्रियाओं के पालनकी निर्वृत्तिके उपायका वर्णन होता है। (१०) कल्पाकल्प प्रकीर्णकमें उन पदार्थों, स्थानों वा विचारोंका वर्णन है जिनको एक साधु द्रव्य, क्षेत्र काल, भावकी अपेक्षा काम में ला सकता है | ་ (११) महाकल्प संज्ञक प्रकीर्णकमें उन तीनों कालकी योग क्रियाओंका वर्णन है जिनको एक जिनकल्पी ( अर्थात् इतना उन्नत चारित्र साधु जो अपनेको संघसे प्रथक् कर लेता है ) साधु शरीर आदिकी अपेक्षा उसके चहुंओरके द्रव्य, क्षेत्र, भाव, कालके अनुसार उपयोग में लाता है । और स्थविरकल्पी ( साधुसंघका एक सदस्य ) साधुके चारित्र नियमोंका भी वर्णन है, अर्थात् शिक्षाक्रम, साधुओंकी संभाल, आत्म-शुद्धि आदिका वर्णन है । (१२) पुण्डरीक प्रकीर्णकमें दान, पूजा तप, संयम आदिका वर्णन है, जिनसे आत्माको चतुर्निकायकदेवस्थानों में जन्म मिलता है । (१३) महापुण्डरीक प्रकीर्णकमें उन कारणों और व्रत उपवास आदिका वर्णन है, जिनके फलस्वरूप आत्मा इन्द्र, प्रतीन्द्र आदि होता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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