Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 123
________________ १०८ ] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग | \\\\\LITO प्रथमानुयोग - इसमें ६३ शलाका पुरुषों ( महात्माओं ) का - वर्णन होता है । इसके ५०००, मध्यम पद होते हैं | १४ पूर्वगतः - ( १ ) उत्पाद पूर्व में जीव, पुद्गल, काल आदिके स्वभावका वर्णन उनके विविध स्थानों और समय में उत्पाद, धौव्य, व्ययकी अपेक्षा कहा जाता है । इसके मध्यमपद १,००,००० होते हैं । (२) अग्रायणी पूर्व में ७ तत्व, ९ पदार्थ, ६ द्रव्यों और निश्चय एवं व्यवहारनयोंका वर्णन कथित होता है। इसमें ९६,००,००० - मध्यमपद होते हैं । (३) वीर्यानुवाद पूर्व में जीव, अजीव, दोनों, स्थान, समय, एवं भाव वीर्यकी शक्तियोंका और तपोवीर्यका स्वरूप तथा नरेन्द्र, चक्रवर, बलदेवके चलका वर्णन होता है। इसके पद होते हैं। ० मध्यम (४) अस्ति नास्तिप्रवाद पूर्वमें जीव एवं अन्य द्रव्योंके क्षेत्र, काल, भावादिकी अपेक्षा अस्तित्व और नास्तित्वका वर्णन होता है । एवं सप्तभंगीका कथन होता है। इसमें ६०,००,००० मध्यमपद होते हैं । (५) ज्ञानप्रवाद पूर्व में मति, श्रुति, अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान एवं कुमति, कुश्रुति और विभंगज्ञान इनका पूर्ण विवेचन होता है। इसके ९९ ९९, ९९९ मध्यमपद होते हैं । 1 (६) सत्यप्रवाद पूर्व मौन और वचनालापका विवरण कहता है । विविधं व्याख्यानको आदिका एवं १० यथार्थ बचनाळापको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com ܕܘܘܕܘ

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