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पंचम परिच्छेद । [१०५ ७३, ७०, ९५,५१, ६१५ । यही श्रुतके सम्पूर्ण अक्षर समझना चाहिए। परमागमके मध्यम पदको १६, ३४, ८३, ०७, ८८८ से इन कुल अक्षरोंको विभक्त करनेसे हमें इन अंगोंके पदोंकी संख्या मालूम हो जाती है जो ११, २८, ३५, ८०, ००५ है। अवशेष ८०१०८१७५ अंग बाह्यके अक्षरोंकी संख्या है । यह अङ्ग बाह्य १५ प्रकीर्णकोंमें विभक्त हैं जो वैकालिक, उत्तराध्ययन आदि हैं।
द्वादशाङ्ग निम्नप्रकार हैं
(१) आचारङ्गमें मुनिधर्मके चारित्र सम्बन्धी नियमोंका पूर्ण विवरण है। इसमें १८००० मध्यमपद हैं।
(२) सूत्रकृतांगमें धार्मिक क्रियायोंका और अन्य धर्मोकी क्रियायोंके अन्तरका वर्णन है । इसमें ३६००० मध्यमपद हैं।
(३) स्थानांगमें एक या अधिक स्थानोंका वर्णन है अथवा जीव पुद्गल आदि द्रव्योंका संख्यापेक्षया वर्णन है। जैसे जीव द्रव्य एक है और वही चेतना-शक्तिकी अपेक्षा सर्व जगह है और उसकी सिद्धावस्था वा संसारावस्थाकी अपेक्षा वह दो प्रकारका है। इसमें ४२००० मध्यम पद हैं। ___(४) समवायाङ्गमें द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी अपेक्षा जो समानताएं उत्पन्न होती हैं उनका वर्णन है। जैसे द्रव्यकी अपेक्षा धर्म
और अधर्म एक हैं (दोनों द्रव्य हैं) ऐसे ही समझना चाहिये । इसमें १६४००० मध्यम पद हैं।
(५) व्याख्याप्रज्ञप्ति शिष्यों द्वारा पूछे गए प्रश्नोंका तीर्थकर
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