Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 111
________________ ९६] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम माग । पौष वदि ११ को जन्मे थे। आपकी आयु १०० वर्षकी थी। आप बाल ब्रह्मचारी थे। आपने राज्य भोग भी नहीं किया था। कुमारावस्था में ही दिगम्बर मुनि होगए थे। आपके समकालीन राजा अजितगय थे। आपके समयमें धर्मका हास बिलकुल होचुका था। किसीको भी यथार्थ धर्मका ज्ञान न था। आपने फिरसे धर्मका यथार्थरूप समझाया और लोगोंको यथार्थ सभ्यताका पाठ पढ़ाया था। मनुष्योंको हिंसावृत्तिसे बचाया था। आपकी ऐतिहासिकताको आजकलके इतिहासकार भी स्वीकार करते हैं । * आपके समयमें भी वानप्रस्थ, आजीवक आदि संप्रदायोंका विशेष प्रचार था। एक समय आप विहार करते जा रहे थे कि एक वानप्रस्थ सन्यासीको आपने लकड़ सुलगाए पंचाग्नि तपते देखा था। उस लकड़के भीतर खुशालमें एक सपे युगल था, जिसका ज्ञान उस कमठ नामक सन्यासीको न था। भगवानने सन्यासीको उनका अस्तित्व बतलाया। पाखण्डी कमठने भगवानकी बातपर विश्वास न लाकर उस लकड़को चीरा, तो देखा कि भगवानका कहना सत्य था। सपेयुगल मृत्युके निकट थे इसलिये भगवानने उनको णमोकार मंत्र सुनाया और वे मरकर धरणेन्द्र और पद्मावतीदेवी हुए। मिथ्यात्वी कमठको इससे भी अपने कृत्यपर पश्चात्ताप न हुआ और वह ऐसे ही कुतप तपकर व्यंतर देव हुआ। भगवान पार्श्वनाथ जिस समय अहिक्षेत्र ( वर्तमान * देखो दी इन्साइक्लोपेडिया आफ रिलीजन एण्ड ईथिक्स भाम ७ पत्र ४६५ । अथवा 'शाट स्टडीज इन दी साइन्स ऑफ कम्परेटिव रिलीजन्स' पत्र २४३-४। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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