Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 109
________________ .९४] संचिन जैन इतिहास प्रथम भाग। फिर विहार और धर्मोपदेश देकर आपने वैशाख बदी चौदसको मम्मेदशिखरसे मुक्तिलाम किया था। आपके विषयमें भी वह सब बातें थीं जो प्रत्येक तीर्थङ्करके होती हैं। भगवान नमिनाथके पहिले हरिषेण नामक चक्रवर्ती सार्वभौमिक अधिपति होचुके थे और आपके बाद जयसेन नामक चक्रवती हुए थे। लक्ष्मण नामक नारायण भगवान नमिनाथसे पहिले हो चुके थे। .. बावीसवें तीर्थङ्कर भगवान नेमिनाथ यदुवंशमें हुए थे। आप अर्जुन और कृष्णके समकालीन थे। आपके पिता नृप समुद्रविजय द्वारिकापुरीके अधिपति थे। आप रानी शिवदेवीके गर्भ में मिती कार्तिक सुदी ६ को अपराजित स्वर्गसे आए थे । एवं श्रावण सुदि ६ को आपका जन्म हुआ था। आपने न राज्य · किया और न विवाह ही किया था । कुमारावस्थामें वासुदेव श्रीकृष्णचंद्रसे आपके प्रतिम्पर्धक क्रीड़ाएं होती थीं। उन क्रीड़ाओंमें भगवानके अतुल पराक्रम एवं बलका अनुभव करके श्रीकृष्णने एक विधि रची थी। उन्होंने भगवानका विवाह रचवाया था परन्तु मार्ग में ही हिरण आदि निरापराध जंतुओंको बंधवा रक्खा था। भावानने उधरसे निकलते हुए उन पशुओंके विलविलाहटके आर्तनाद दृश्य देखें जिनसे तत्क्षण उनको पशुओंपर दया आगई और वैराग्य रसका श्रोत उनके हृदयमें प्रस्फुटित हो निकला । पशुओंको बन्धनमुक्त करके आपने अपने वस्त्राभूषण उतार डाले एवं गिरनार पर्वतपर जाकर मिती श्रावण शुक्ल ६.को दिगंबर दीक्षाको अंगीकृत कर गए। उधर इनकी भावी पत्नी राजा उग्रसेनकी पुत्री राजमतीने इनके विरहको सहन न किया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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