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संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग |
मिती अगहन सुदी १४ को जन्मे थे । आपने पाणिग्रहण किया था एवं ४२००० वर्ष तक राज्य भोग करके आपने मिती अगहन सुदी - दशमको दीक्षा धारण की थी । सोलह वर्ष संयममें चीते थे। दीक्षा के पश्चात् बेला करके आपने हस्तिनापुरमें राजा मन्दसेनके यहां प्रथम पारणा किया था । पश्चात् मिती कार्तिक शुक्ल केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। फिर विहार और धर्मोपदेश देकर चैत्र कृष्ण अमावस के दिन आपने सम्मेद शिखरसे मोक्ष लाभ किया था । आप भी चक्रवर्ती राजा थे । आपके विषय में वह सब बातें हुई थीं जो 'प्रत्येक तीर्थकरके होती हैं । आपके समकालीन राजा गोविंदराज थे ।
द्वादशीको आपको
भगवान अरहनाथके मुक्त गए पश्चात् एवं भगवान मल्लिनाथके होनेके पहिले सुभ्रम नामके चक्रवर्ती हुए थे। एवं नारायण पुण्डरीक और बलदेव नंदी भी हुए थे। पश्चात् भगवान मल्लिनाथ अपराजित विमान से चयकर मिथिलापुरी में अपनी माता रानी रक्षितादेवीके गर्भ में मिती चैत्र शुक्ला पडिवाको आए थे। आपके पिता कुरुवंशीय राजा श्री कुम्भराय थे। मिती मगसिर शुक्ला एकादशीको आपका जन्म हुआ था । जन्म समय इन्द्रोंने सर्व तीर्थङ्करोंके जन्म समयकी भांति उत्सव मनाया था । आप बालब्रह्मचारी रहे थे। राज्य करके आपने मिती अगहन सुदी ११ को दीक्षा ली थी । बेला करके चक्रपुर के राजा ऋषभदत्तके यहां पारणा किया था। आपने छे दिन संयम में विताये थे । मिती पौष कृष्ण २ को आप केवली हुए थे । केवली होकर ने पृथ्वीपर विहार किया था एवं धर्मका स्वरूप दर्शाया था ।
पश्चात् फाल्गुन शुक्ल पंचमीको चाप सम्मेदशिरिसे मुक्त
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