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चतुर्थ परिच्छेद । [१ प्राप्तकर पचास वर्षतक राज्य करके मिती जेठ वदी त्रयोदशीके दिन इन्होंने दीक्षा धारण की थी। आपका प्रथम पारणा मंदरपुरमें राजा धरममित्रके यहां हुआ था। आप सोलह वर्षतक संयमी रहे थे पश्चात् मिती पौष सुदी एकादशीको आप केवलज्ञानी हुए थे। दीर्घकाल तक आर्यखण्डमें विहार और धर्मोपदेश देकर आपने सम्मेदशिखरसे जेठ वदी चौदशके दिन मोक्ष लाभ किया। आपके जीवनमें भी वह सब वातें हुई थीं जो प्रत्येक तीर्थकरके हुआ करती हैं। आप चक्रवर्ती राजा थे।
भगवान धर्मनाथ और शांतिनाथके अन्तरालमें मधवा और सनत्कुमार नामक दो चक्रवर्ती राजा हुए थे।
___ सत्रहवें तीर्थकर भगवान कुन्थुनाथका जन्म वैशाख सुदी १ के. दिन राजा सूर्यकी रानी श्रीमतीके गर्भसे हस्तिनापुरमें हुआ था। कुमारकालको व्यतीत करके आपने राज्यभोग किया था। पश्चात् मिती वैशाख सुदी प्रतिपदाको दीक्षा ग्रहण की थी। दीक्षाके तीसरे दिन आपने हस्तिनापुरमें राजा अपराजितके यहां पारणा किया था। आप सोलह वर्ष तक संयमी रहे थे। पश्चात् मिती चैत्र सुदी तीजके दिन केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। आपने समस्त आर्यस्खण्डमें विहार और धर्मप्रचार किया था। पश्चात् सम्मेदशिखरसे सर्व कर्मनाश कर आपने वशाख सुदी पडिवाके दिन मोक्ष लाभ किया था। आप भी चक्रवर्ती राजा हुए थे। . ___ अठारहवें तीर्थकर श्री अरहनाथजी हस्तिनापुरमें कुरुवंशीय राजा सुदर्शनके यहाँ सनी सुमित्रादेवीके गर्भ फागुन सुंदी ३.को आकर
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