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संक्षित जैन इतिझस प्रथम भाग ।
____ अर्थात् जिस देशमें चारों वर्णोके वर्णगत आश्रमधर्म की व्यवस्था नहीं, वही स्थान म्लेच्छ देश होता है। आर्यावर्त उससे भिन्न है। जैनियों में वर्णव्यवस्था उनके प्रथम तीर्थंकर (हिन्दुओंके मान हुए नवें अवतार)श्री ऋषभदेवके जीवनकालसे अथवा पूर्णरूपसे भारतवर्षके प्रथम सार्वभौम अधिपति-पौराणिक चक्रवर्ती भरत “जिनके नामपर हिन्दुस्तान भारतवर्ष कहलाता है" के जमानेसे प्रचलित है और पूर्व आर्य जैनी थे, यह हम दख चुके हैं। इसलिये पूर्वी आर्य म्लेच्छ नहीं थे और न वह प्राचीन आर्योंमेंसे रुष्ट होकर निकले थे। कुरुपाश्चालके आयों द्वारा प्रचारित हिंसापूर्ण यज्ञकाण्ड वास्तवमें वेदों में नहीं था। क्योंकि वेदोंमें हिंसावृत्तिका विधान नहीं हो सकता, जो उसके मांसभक्षी एवं राक्षसोंके श्राप सम्बन्धी वाक्यों आदिसे प्रगट है । इसलिए वेदोंकी . वास्तविक शुचितामें यह घृणोत्पादक विषय पश्चात् किसी दुसेमयमें बढ़ा दिया गया था। वेदोंमें यज्ञविषय पहिले नहीं था, वह पीछेसे बढ़ा दियागया था
उनका सामान्य दिग्दर्शन । ___ यह यज्ञ विषयक विषय वेदोंमें कब बढ़ा दिया गया, इसके उत्तरके लिए हम वेदोंका सामान्य दिग्दर्शन करेंगे। हिन्दू वेदोंको ईश्वरकृत बतलाते हैं परन्तु मंत्रों का ही संगठन इस व्याख्याको निर्मूल कर देता है । यथार्थ ईश्वरीय वाणीकी उत्पत्ति दो प्रकारसे कही जाती है अर्थात् (१) आत्माके निजगुण केवलज्ञान द्वारा अथवा (२) किसी तीर्थकरके निर्वाण प्राप्तिके पहिले सदुपदेश द्वारा । वेद दूसरे प्रकारके बतलाम जाते हैं क्योंकि उनको श्रुति कहा गया है। इस सम्बन्धमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com