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MANNARY
SAnil.lam
. पहिला परिच्छेद। .. [३९ तक जहां अब हिमालय, पञ्जाब और संयुक्त प्रान्त आदि स्थित हैं, समुद्र फैला हुआ था और इस देशकी दक्षिणी भूमि अफ्रिका महाद्वीपके पूर्वी स्थलसे मिली हुई थी। इसके अतिरिक्त प्रगटरीत्या भी बहुत परिवर्तन हुआ प्रतीत होता है। पहिलेकी बहुतसी नदियां और कितनेक नगर अब नहीं मिलते । बहुतसी नदियोंके प्रवाह मार्ग आदि बदल गए हैं। बहुतसे नगर उजड़ कर फिरसे बस गए हैं। भारतके प्राचीन नगर भूगर्भ में हैं क्योंकि प्राचीन स्थानोंकी खुदाई करनेसे पृथ्वीके भीतरसे प्राचीन नगरोंके भवनों के दो दो मंजिलके खंडहर मिले हैं जैसे—प्राचीन पाटलीपुत्र और तक्षशिलाके स्थान खोदनेसे निकले हैं। पृथ्वीका इस तरह परिवर्तित होना किसी प्रकार भी अतिशयोक्ति नहीं रखता। जैन शाकोंमें भूमिकी प्राकृतिक आकृतिमें परिवर्तन होते रहना माना गया है । अतएव भारतकी प्राचीन प्राकृतिक आकृति और उसपरके प्रसिद्ध स्थानोंका निश्चय करना अति कठिन काम है। भारतवर्षके प्राचीन नगरों आदिके विषयमें गवर्नमेन्टके पुरातत्व विभागने अपने उद्योगसे कुछ अन्वेषण किया है और उसके परिणामरूपमें जो फल प्राप्त हुआ है उसका मूल्य अति अधिक है। उसका वर्णन यहांपर नहीं किया जा सकता। सामान्यतया मि० कनिंगहम साहबके प्राचीन भूगोलसे लेकर वर्णित केवल कुछ बातें ला० लाजपतरायके प्राचीन इतिहाससे यहां उद्धत करते हैं:
भारतके प्राचीन प्रदेश और नगर । चीनी पर्यटकोंने भारतको पांच बड़े प्रांतों में विभक्त किया है। वे पांच प्रांत यह थे:
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