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" तृतीय परिच्छेद।
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युवावस्थाकी चेष्टाएँ परोपकारके लिये होती थीं। और उनसे प्रजाका पालन होता था। वे अनुपम बलशाली और दृढ़तासे कार्योको करनेवाले थे। समयको निरर्थक नहीं जाने देते थे । भगवान् ऋषभ गणितशास्त्र, छन्दशास्त्र, अलंकारशास्त्र, व्याकरण शास्त्र, चित्रकला, लेखनप्रणालीका अभ्यास करते थे। उन्होंने ही सबसे पहिले इन बातोंको अन्य लोगोंको बताया था। वे मनोरञ्जनके लिये गाना बजाना और नाटक एवं नृत्यकी कलाओंका भी उपयोग करते थे । देव बालकोंके साथ विविध खेल भी खेला करते थे। ये जलक्रीडा-तैरना-आदि भी करते थे।'
जब भगवान युवा हो गये तब महाराज नाभिने इनसे विवाह करनेके लिये कहा । भगवानने अपने आदर्शचरित्रसे भविष्यमें विवाहादिक मार्ग चालू करनेके लिए अपनी सम्मति केवल · ऊँ' शब्द कहकर दी। तदनुसार कच्छ महाकच्छ नामक दोनों राजाओंकी परम सुन्दरी नन्दा, सुनन्दा नामक दो कन्याओंसे आपका विवाह हुआ था । “ रानी नन्दाके समस्त भरतक्षेत्रको आनन्द देनेवाला प्रथम चक्रवर्ती भरत नामका पुत्र और महा मनोहर ब्राह्मी नामकी कन्या उत्पन्न हुई। और सुनन्दाके महाबलवान बाहुबलि और परमसुंदरी सुंदरी नामकी कन्या हुई । भरत और ब्राह्मीके अतिरिक्त गनी नंदाके वृषभसेन आदि अंठानवे पुत्र अन्य हुये और ये समस्त पुत्र तद्भव मोक्षगामी थे। भगवानने अपने समस्त पुत्र पुत्रियोंको अक्षर विद्या, चित्र विद्या, गान विद्या और गणित आदि विद्याओंमें अतिशय निपुण
x बा० सुरजमलका "जैन इतिहास भाग १ पृष्ठ ३३-३४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com