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संधिश जैन इतिहास प्रथम भाग।
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आपके भी पंचकल्याणक उत्सव आदि सर्व अतिशययुक्त बातें थीं। भगवान ऋषभके तीर्थकालमें जो राजा धर्मभ्रष्ट होगए थे, संभव है, उनका प्राबल्य इस अन्तरमें हो गया था, उसीके निवारणके. लिये ही श्री अजितनाथजीके तीर्थकी प्रवृत्ति हुई प्रतीत होती है। ऐसे ही अन्य तीर्थकरोंकी भी समझना चाहिए। यथार्थ कारण उस अज्ञात जमानेके जानना अत्यन्त कठिन कार्य है।
भगवान अजितनाथके समयमें सार्वभौम राजा सगर, द्वितीय चक्रवर्ती थे। वह भी मोक्षको गए थे। इनके पुत्र भागीरथ इनके उत्तराधिकारी हुए। इन्होंने भी अपने पुत्र वरदत्तको राज्य देकर शिवगुप्त मुनिके पास दीक्षा ग्रहण की थी। कैलासपर्वत पर इनको केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। उस समय देवोंने इनके चरणोंका प्रक्षाल किया था। यह प्रक्षाल-अभिषेक जल गंगा नदीमें मिल गया था। इसलिये गंगा नदी भागीरथीके नामसे प्रसिद्ध हुई। यह भी मोक्ष गए। . भगवान अजितनाथके मोक्ष जानेके कई सागर बाद तीसरे तीर्थकर संभवनाथ हुए थे। यह फागुन सुदी ८ को गर्भ में आए थे,
और कार्तिक सुदी पूर्णिमाको अयोध्यामें जन्मे थे। आपके पिताका नाम राजा दृढ़रथराय और माताका नाम सुषेणा था। इनका भी वंश इक्ष्वाक और गोत्र काश्यप था। यह भी तीन ज्ञानके धारक सर्व तीर्थकरोंकी भांति थे। इनका भी विवाह हुआ था। इन्होंने एक दीर्घकालतक राज्य भोगकर संसारका त्याग किया था। दो दिनके उपवासके बाद आपने. श्रावस्तीके राजा सुरेन्द्रदासके यहां आहार किया था। चौद्रह वर्ष फिर तप करनेके बाद आपको कार्तिक वदी चतुर्थीके दिन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com