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संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग।
एक सफेद बाल नगर पड़ा जिससे उनको अपना बुढ़ापा आया जान पड़ा और उनको वैराग्य हो गया। अपने पुत्र अर्ककीर्तिको उन्होंने राज्य देकर दीक्षा धारण की। भरतका वैराग्य गृहस्थावस्थासे ही इतना प्रबल था कि उन्हें दीक्षा लेते ही केवलज्ञान हो गया। हजारों वर्षोंतक सर्वज्ञरूपमें उपदेश देकर भी मोक्षको गए।
__इस समयके एक महामण्डलेश्वर राजा जयकुमार थे। यह हस्ति नापुरके नरेश सोमप्रभके पुत्र थे। यह भरतके साथ दिविज्यमें रहे थे। इनकी रानी काशी नरेश महाराज अकंपनकी पुत्री सुलोचना थीं. जिन्होंने इनको स्वयंवरमें वरा था। कई वर्षों राज्य और भोग भोगकर दोनों राजा रानी साधुधर्मको स्वीकार कर गए । यह भगवान ऋषभदेवके गणधर हुए । महागनी सुलोचना मरकर स्वर्गको गई।
इनके अतिरिक्त हरिवंशके म्थापक महामंडलेश्वर राजा हरि, उग्रवंशका संस्थापक राजा काश्या आदि प्रस्यात् पुरुष उससमय हुए थे।
___भगवान ऋषभदेवके जमानेके उक्त वर्णनसे हमें उस अत्यन्त प्राचीन जमानका हवाला मिल जाता है और हमको मालूम हो जाता है कि किस तरह प्रारम्भ २ में जैनधर्मके आदि प्रवर्तक भगवान ऋषभने जगतको सभ्यताका प्रथम पाठ पढ़ाया था। अब हम आगे अन्य अवशेष २३ तीर्थकरों एवं महापुरुषों का वर्णन करेंगे।
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