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चतुर्थ परिच्छेद ।
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आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभू चन्द्रपुरी ( बनारस के निकट ) के राजा महासेनके पुत्र थे । यह रानी लक्ष्मणाके गर्भ में चैत्र वदी पंचमीको आए थे। तब सब तीर्थंकरोंकी माताओंकी तरह रानी लक्ष्मणाने १६ शुभ स्वप्न देखे थे और सब तीर्थंकरोंके शुभागमन समय १५ मास पहिले जैसे इन्द्र रत्नवर्षा आदि करने लगते हैं वह सब शुभ कृत्य इनके सम्बन्धमें भी हुए थे । आपने विवाह करके एक दीर्घकाल तक राज्य भोग किया था । पश्चात् अपने पुत्र वरचंद्रको राज्य देकर सब तीर्थकरों की तरह इन्द्रों द्वारा लाई गई विमला पालकीपर चढ़, वनमें पहुंचकर पौष सुदी एकादशीको दीक्षा धारण की थी। दो दिनका उपवास करने के बाद आपने नलिन नामक नगर में सोमदत्त राजाके यहां आहार लिया था । फिर तीन मास आपने तप किया जिसके कारण मिती फाल्गुन वदी सप्तमीको चार कर्मोंका नाश हुआ और भगवान केवलज्ञानी बने । पश्चात् आर्यखण्डमें विहार करके फाल्गुन सुदी ७ को सब कर्मोंका नाश करके सम्मेद शिखर से मोक्ष पधारे।
इसके बाद बहुत काल व्यतीत होनेपर नौवें तीर्थंकर पुष्पदंत हुए । फाल्गुन वदी नौमीके दिन आप गर्भमें आकर मार्गशीर्ष सुदी प्रतिपदाको काकंदीपुर में जन्मे थे। वहांके राजा आपके पिता सुग्रीव थे। माता जयरामा थीं । पूर्वके तीर्थकरों की भांति आप भी इक्ष्वाकु वंशके काश्यप गोत्री क्षत्री थे। राज्य भोग करके अपने पुत्र सुमतिको राज्य देकर आपने मिती मगसिर सुदी पड़िवाके दिन दीक्षा धारण की और दो दिनका उपवास करके आपने सबलपुर में पुष्पमित्र नामक राजाके यहां बाहार लिया था । चार वर्ष तप करनेपर
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