Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 102
________________ चतुर्थ परिच्छेद । करने की सम्मति दी. परन्तु राजाने नहीं मानी और उनके पुरोहित भूतिशर्मा ब्राह्मणके पुत्र मुण्डशालायनने हाथी घोड़ा, कन्या, सुवर्ण आदि दश प्रकारका दान ब्राह्मणादिको देनेकी सम्मति दी और यश व पुण्य आदिका लोभ बताया । गृहस्थों द्वारा रचित ग्रन्थोंमें इन दानोंकी विधि बतलाई तब राजाने दश प्रकारके दान दिये। इसी समय से ब्राह्मण वर्ण जैन धर्मका द्रोही होने लगा और इसी समय से चार दानोंके बजाय हाथी, घोडे आदिका दान शुरू हुआ था । * ८ * जैन इतिहास भाग १ पृ० ११९ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 111 ग्यारहवें तीर्थङ्कर भगवान श्रेयांसनाथ जेठ वदी छठको माता नंदादेवी के गर्भ में आकर फागुन वदी म्यारसको जन्मे थे । आपके पिता विष्णु सिंहपुर के राजा थे। आपके जन्मके पहिले और भगवान शीतलनाथके मोक्ष जानेके बहुत दिनोंबाद धर्मका मार्ग बंद हो गया था । उसको इन्होंने पुनः प्रगट किया। आप भी इक्ष्वाकु वंशके थे । राज्यभार अपने पुत्र श्रेयसकरको देकर आप मिती फागुन वदी म्यारस के दिन दिगम्बर मुनि हो गए । चतुर्थ मन:पर्यय ज्ञान प्राप्त होगया, जैसे तीर्थंकरोंको प्राप्त होजाता है । दो दिनके उपवास के बाद सिद्धार्थपुरके राजा नंदके यहां आहार लिया था । दो वर्ष तप तपकर माघ वदी अमावसके दिन मनोहर नामक वनमें आपको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। फिर समस्त आर्यखंडमें समवशरण समेत बिहार कर जब आयुमें एक माह शेष रहा तब आप सम्मेदशिखिरसे बाकी चार कमौका नाश करके मिती श्रावण सुदी पूर्णमासीके दिन www.umaragyanbhandar.com

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