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संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग ।
केवलज्ञान होने पर भगवान अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतसुख और अनंतवीर्यकर युक्त हो गये थे। भगवानने एक हजार चौदह दिन कम एक लाखपूर्व तक समवसरण सभामें उपदेश दिया था । जब आयुके चौदह दिन शेष रह गये तब उपदेश देना बंद हुआ और आप (कैलासपर्वत पर ) पद्मासन लगाकर शेष कर्मोका नाश करने लगे। यह दिन पौष सुदी १५ का था। आनंद नामक पुरुष द्वारा भगवानका कैलासपर आगमन सुन भरत चक्रवर्ती वहां गया । और चौदह दिनों तक भगवानकी सेवा की थी।' *
" जिस समय भगवान ऋषभदेव अनेक मणिमयी शिलाओंसे रमणीय कैलासपर्वत पर बिराजे |x उस समय उनके साथ साथ दस हजार योगी और भी गए । भगवानने वहांपर मनोयोग आदि तीनों योगोंका निरोध किया, वेदनीय नाम आदि चार अघातिया कोको जड़से उखाड़ा और कल्पवृक्षोंकी मालाओंको धारण करनेवाले देवोंसे पूजित हो 'जहां सुख ही सुख है ऐसे' मोक्ष स्थानपर जा बिराजे " + यह दिन माघ मासके कृष्णपक्षकी चतुर्दशीका था । भगवानके मोक्ष चले जानेपर देवोंने आकर · निर्वाण कल्याणक' नामका पांचवां कल्याणकोत्सव मनाया और भगवानके शरीरका चंदनादि सुगन्धित
* जैन इतिहास भाग १ पृष्ठ ५२ ।
x हिन्दुओं के प्रभासपुराणमें व्यासजीने भगवान ऋषभनाथको, जो उनके यहाँ अवतार माने गए हैं, कैलाशपर्वतसे मुक्त हुआ लिखा है। ययाः-कैलाशे विमले रम्ये वृषभोऽयं जिनेश्वरः ।
चकार स्वावधारं च सर्वशः सर्वगः शिवः ॥ + हरि० पु० सर्ग १२ श्लोक ८१ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com