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संक्षिप्त जैन इतिहास: प्रथम भाग |
कहने पर वे पालकी में सवार हो लिये और उदयाचल पर्वत पर सूर्यकी शोभा धारण करने लगे । ' x
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जाकर
' चैत्र वदी नौमीके दिन भगवान् ॠषभने सिद्धार्थ नामक वनमें जो अयोध्यासे न तो दूर था और न बहुत पास ही था, सब कुटुम्बियों की आज्ञापूर्वक दिगम्बर दीक्षा धारण की। दीक्षा लेते समय सब परिग्रहों का त्याग किया। भगवानके साथ चार हजार राजा - ओंने दीक्षा धारण की थी । दीक्षा लेनेके बाद इन्द्रोंने भगवानकी पूजा की। भगवानने पहिले छह मासका उपवास धारण करनेकी प्रतिज्ञा कर तप करना प्रारम्भ किया, तप धारण करते समय भगवानको मन:पर्ययज्ञानकी उत्पत्ति हुई । इस ज्ञानसे मनकी गति जानी जाती है । जिन राजाओंने भगवानके साथ दीक्षा ली थी, वे दुःखोंको सहन न कर सके और फलफूल खाने लगे- उनसे भूख न सही गई । महाराजा भरत के डर से ये शहरों में नहीं जाते थे, इन लोगोंने भिन्न २ मेष धारण कर लिये थे। किसीने लंगोटी लगा ली थी, कोई दंड लेकर दंडी बन गया था, किसीने तीन दंडोंको धारण किया था, इसलिये उसे लोग त्रिदण्डी कहते थे । इन लोगोंके देव भगवान् ऋषभ ही थे । ' *
इसी समय भगवानके पौत्र मरीचिने तपसे भ्रष्ट हो सांख्यमत के सदृश एक धर्मकी स्थापना की थी और योग शास्त्रोंकी रचना की थी । भगवानने नग्न दिगम्बर दीक्षा ही धारण की थी, यह हम पहिले लिख चुके हैं। हिन्दुओंके भागवतमें भी इसी बात की पुष्टि है ।
* पूर्व पृष्ठ १३२ । * जैन इतिहास भाग १ पृष्ठ ४४-४५.
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