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६४] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग। कर दिया था । * और उनके कर्णछेदन, मुण्डन, यज्ञोपवीत संस्कार आदि भी भगवानने किए थे।
भगवान ऋषभदेवने सबसे पहिले अपनी दोनों कन्याओंको ज्ञान दान दिया था। एक दिवस उन्होंने ' उन्हें पढ़नेके लिये मौखिक उपदेश देकर विद्याका महत्व बताते हुए अ, आ, इ, ई, आदि स्वरोंसे अक्षरोंका ज्ञान प्रारम्भ कराया और इकाई, दहाई आदि गिन्ती भी पढ़ाना प्रारम्भ किया। भगवान ऋषभदेवके चरित्रमें अपने पुत्रोंको पढ़ानेका वर्णन कन्याओंके पढ़ानेके बाद आया है। इससे मालूम होता है कि भगवानने स्त्रीशिक्षाका महत्व जगतमें प्रगट करनेको ही ऐसा किया। अपने इस आदर्श कार्यमें भगवानने यह गूढ़ रहस्य रक्खा
और प्रगट किया है कि पुरुष शिक्षाका मूल कारण स्त्रीशिक्षा ही है। दोनों कन्याओंके लिए भगवानने एक “ स्वायंभुब" नामक व्याकरण बनाया था और छन्दशास्त्र, अलंकारशास्त्र आदि शास्त्र भी बनाए थे।'x
नाभिरायके समय जो धान्य एवं फलादि स्वयं प्राकृतिक रूपमें उत्पन्न हुए थे, वह भी नष्ट होने लगे और उनमें रस आदि भी कम होने लगा। तब प्रजा, राजा नाभिके पास आकर अपने इस दुःखको उनसे कहने लगी। राजा नाभिने उसको भगवान ऋषभके पास भेज दिया। समस्त प्रजाको भूखसे व्याकुल देख अतिशय दयालु भगवान ऋषभने उन्हें दिव्य आहार दे क्षुधाजन्य त्राससे बचाया। "जीविकाके लिये अनेक उपाय बतलाए । धर्म, अर्थ, कामके साधनोंका उपदेश
* श्रीहरिवंशपुराण सग ९ श्लोक २१-२४ ।
x सरजमलकृत जै. इ. भाग १, पृ ३६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com