________________
५२ ]
संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग |
राजा प्रतिश्रुतिके सन्मति नामका पुत्र उत्पन्न हुआ और वे पल्यका दशवां भाग जीकर स्वर्गलोकके अतिथि बने । इसलिये सन्मति दूसरे कुलकर हुए । इनके समयमें ज्योतिरंग नामके कल्पवृक्षों का प्रकाश इतना भी नही रहा था कि तारागणों और नक्षत्रोंका प्रकाश भी लोगों को दृष्टिगोचर होने लगा । इस प्रकार तारादिकोंको प्रकट होते देखकर उस समय के मनुष्य फिर डरने लगे और वे सन्मति के पास आए। इन्होंने उनको समझाया, ज्योतिषचक्रका सत्र हाल बताया, रात्रि, दिन, सूर्यग्रहण होना आदि सब ही उनको समझाया और ज्योतिष विद्याका प्रचार किया । इस प्रकार " सन्मति पिताकी मर्यादाका भले प्रकार रक्षक था, अनेक कलाओंमें निपुण था और प्रजाको अतिशय
मान्य था ।
"
तीसरे कुलकर सन्मति के पुत्र क्षेमंकर थे । इनके समय में सिंहादि क्रूर जंतुओंने अपने शांतभावको छोड़कर कुछ क्रूरताको धारण कर लिया था, इसलिये वे मनुष्योंको तकलीफ देने लगे । पहिले मनुष्य इन पशुओंके साथ रहते थे; परन्तु अब क्षेमंकरके कहनेसे वे उनसे अलग रहने लगे और उनपर विश्वास नहीं करने लगे। इस प्रकार इन्होंने उन सिंहादि पशुओंसे बचनेके अनेक कारण बता लोगोंका बड़ा उपकार किया था ।
पहले कुलकरोंकी भांति असंख्यात करोड़ों वर्ष बाद चौथे क्षेमंधर नामके मनु हुए। इनके समयसे सिंहादि क्रूर पशुओं की क्रूरता और भी बढ़ गई । इसलिये उनसे रक्षा करनेके लिये इन्होंने उन मनुष्योंको लाठी आदि रखनेका उपदेश दिया ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com