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द्वितीय परिच्छेद ।
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होने की वजह से उनका प्रकाश प्रकट नहीं होता था । अब इस दिन इन ज्योतिरंग जातिके वृक्षोंका प्रकाश क्षीण हो गया था; इसलिए चंन्द्र और सूर्य दिखाई देने लगे । उसदिन इन चंद्र और सूर्यको देखकर मनुष्य बड़े भयभीत हुए और किसी विनकी आशङ्का करने लगे । तंत्र वे मनुष्य अपने में अतिशय प्रभावी और सृष्टिपरिवर्तन के नियमों को जाननेवाले प्रतिश्रुति नामक प्रथम कुलकरके पास गए और उनसे सब हाल कहा । प्रतिश्रुतिने उन आगत मनुष्योंको चंद्र-सूर्यका स्वरूप समझाया और भविष्यमें जीवन निर्वाहकी विधि बताई । इस बोधसे मनुष्यों को शांति हुई और इस प्रकार इन्हीं के समय से इति - हासका प्रारम्भ हुआ ।
कालके भेद पदार्थोंके स्वभावमें अन्तर पड़ जाता है । द्रव्य, क्षेत्र और प्रजाका आचरण औरसे और हो जाता है । प्रसेनजितके समय तक लोग निरपराध थे इसलिए दंड भी निश्चित न थे, परन्तु उनके ही समयसे अब आगे लोग अपराधी होने लगे, अनेक उपद्रव करने लगे इसलिए उन्हें उपद्रवोंसे रोकने के लिए हा, मा, और धिक्कार ये तीन दंड निश्चित किये गए। इस दंडनीतिका प्रयोग उस समय इस सुचारुभाव से किया जाता था कि ' जो मनुष्य किसी काल्दोषसे किसी मर्यादा के उल्लंघन करनेकी इच्छा रक्खें चाहे वे आत्मीयजन हों या परजन हों, उन्हें उनके दोषके अनुकूल अवश्य दंडित किया जाना चाहिये। इस प्रकार दंडनीति व्यवहार व्यवस्था आदि करनेकी अपेक्षा प्रतिश्रुत ही प्रथम कुलकर हुए और मनुष्य उनका कहना मानने लगे
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* श्री हरिवंशपुराण सर्ग ७ श्लोक १४०-४१.
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