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५८] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग ।
तृतीय परिच्छेद। भ० ऋषभदेव और कर्मभूमिकी प्रवृत्ति । कर्मभूमि और ६३ शलाका पुरुष।
हम पूर्व परिच्छेदमें देख आए हैं कि भगवान ऋषभदेवके समयसे कर्ममूमिकी प्रवृत्ति हुई थी और उसी कर्मभूमिके चौथे पलटनमें क्रमसे ६३ शलाका पुरुषोंका होना जान आए हैं। जैनधर्मानुसार ६३ शलाका पुरुषोंका वर्णन इस प्रकार है अर्थात् (१) २४ तीर्थकर, (२) १२ चक्रवर्ती, (३) ९ नारायण, (४) ९ प्रतिनारायण, (५) ९ बलभद्र । यह ६३ ही महापुरुष क्रमसे इसी पवित्र भारतमही पर हुए थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नप्रकार है:२४ तीर्थकर।
जैनधर्ममें प्रत्येक युगमें २४ तीर्थकर माने गए हैं। इस युगके. आदि तीर्थकर श्री ऋषभदेव थे। जैनधर्ममें तीर्थकरसे भाव उस महाव्यक्तिसे है जो इस संसार-समुद्रसे पार उतरनेके लिये और मोक्षस्थानको प्राप्त होनेके लिए एक धर्म-तीर्थकी स्थापना करते हैं । तीर्थकरका पद जीवको अपने पूर्वभवके विविध गुणोंमें अपनेको पूर्ण करनेसे एवं आत्माके गुणोंको घातक दर्शनावर्णीय आदि कमौके आत्मासे हट जाने पर प्राप्त होता है और वे अनन्त चतुष्टयका उप. भोग करते हैं अर्थात् अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत वीर्य और
अनंत सुख एवं अन्य परमात्मगुणोंके अधिकारी होते हैं। अस्तु, बृहत् Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com