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६० ] साक्षप्ति जैन इतिहास प्रथम भाग |
जिस समय भगवान ऋषभदेव गर्भमें आए उसके पहिले महारानी मरुदेवीने इस भांति शुभके सूचक सोलह स्वप्न देखे - (१) सफेद ऐरावत हाथी (२) गम्भीर आवाज करता हुआ एक बड़ा भारी बैल (३) सिंह (४) लक्ष्मी (५) फूलोंकी दो मालाएं (६) तारों सहित चन्द्रमण्डल (७) उदय होता हुआ सूर्य (८) कमलों से के हुए दो सुवर्ण कलश (९) सरोवरोंमें क्रीड़ा करती हुई मछलियाँ (१०) एक बड़ा भारी तालाव (११) समुद्र (१२) सिंहासन (१३) रत्नों का बना हुआ विमान (१४) पृथ्वीको फाड़कर आता हुआ नागेन्द्रका भवन (१५) रत्नोंकी राशि और (१६) विना धुऐंकी जलती हुई । यह स्व महारानी मरुदेवीने रात्रिके पिछले पहर में देखे थे; और इनके अन्त में एक महान बैलको मुखमें प्रवेश करते हुए देखा था । प्रात:काल उठकर नित्यक्रियादिसे निवृत्त हो महारानी मरुदेवी महाराजा नाभिराय के पास गई थीं। महाराजाने उनको सिंहासन पर - अपने निकट बैठाया था; क्योंकि उस समय परदा नहीं था । और स्त्रियोंका पुरुष बड़ा सम्मान किया करते थे ।
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महाराजा नाभिरायने महारानीके स्वप्नका फल अवधिज्ञानसे जानकर बतलाया था कि ' तुम्हारे गर्भ में भगवान ऋषभदेव आए हैं।' आषाढ़ सुदी दूज उत्तराषाढ़ नक्षत्रको भगवान, मरुदेवी के गर्भ में आए थे। इस समय देवोंने आकर अयोध्यापुरी में उत्सव मनाया था और देवियोंने माताकी सेवा करना प्रारम्भ करदी थी ।
नौ मासके व्यतीत होनेपर उत्तरा नक्षत्रमें मरुदेवीने भगवानको · जना था । उनके उत्पन्न होते ही चारोंओर धन वर्षा होने लगी थी ।
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