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संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग।
पिछले हिस्सेसे ही प्रारम्भ होता है। इसी अंतिम समयमें कुलकरोंकी उत्पत्ति होती है। स्त्रियां पुरुषोंको आर्य और पुरुष स्त्रियोंको आर्ये कहा करते हैं और इस समयमें कोई वर्णभेद नहीं होता-सब एकसे होते हैं ।
(४) चौथा हिस्सा ब्यालीस हजार वर्ष कम एक हजार कोड़ाकोड़ी सागर समयका होता है। इसके प्रारम्भमें मनुष्योंकी आयु ८४ लाख पूर्वकी होती है और शरीरकी ऊंचाई २२०.. हाथकी होती है। अंतमें जाकर मनुष्य शरीरकी ऊंचाई अधिकसे अधिक ७ हाथकी रह जाती है। यह समय कर्मभूमिका कहलाता है, क्योंकि इस समयके मनुष्योंको जीवन चलानेके लिये व्यवहारिक कार्य करने होते हैं । राज्य, व्यापार, धर्म, विवाह आदि कार्य इसी हिस्से के प्रारम्भसे होने लगते हैं। इसी हिस्सेमें जीवन चलानके अन्यान्य साधनोंकी उन्नतिका प्रारम्भ होता है । यह उन्नति जीवन-निर्वाहके जड़ साधनोंकी उन्नति है और बराबर होती जाती है, परन्तु आत्मज्ञान, अध्यात्म विद्या, सरलता आदि उच्च भावोंकी कमी होती जाती है।
इसी हिस्सेमें चौवीस महापुरुष उत्पन्न होते हैं जो अपने ज्ञानसे सत्धर्मका प्रकाश करते हैं। इनकी उपाधि तीर्थकर हुआ करती है। इस चौथे हिस्से तक ही मोक्षमार्ग जारी रहता है, अर्थात् इस हिस्सेके अन्त तक ही मनुष्य मोक्ष जा सकता है। आगे मोक्षमार्ग बंद हो जाता है। चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण आदि प्रसिद्ध प्रसिद्ध पुरुष । भी इस हिस्सेमें होते हैं । इन पुरुषोंकी संख्या ६३ होती है और यह त्रेसठशलाका पुरुष कहलाते हैं।
(५) इसके बाद अबपतिकी पलटनाक, पांचवा भाग आता
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