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संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग।
नहीं मानता किन्तु आत्माकी उन्नति और अवनतिसे मानता है। पलटन इस भांति हुआ करती है
प्रत्येक पलटनके छह हिस्से होते हैं और वह १० कोडाकोड़ी सागरकी होती है।
(१) अवनतिकी पलटनके पहले हिस्सेका नाम 'सुषमासुःषमा' होता है। यह समय चार कोडाकोड़ी सागरका होता है ! इस समयके मनुष्योंकी आयु तीन पत्यकी होती है। शरीरकी ऊँचाई चौवीस हजार हार्थोकी होती है। ये मनुष्य बड़े ही सुन्दर और सरलचित्तके होते हैं । इन्हें भोजनकी इच्छा तीन दिन बाद होती है और इच्छा होते ही कल्पवृक्षोंसे प्राप्त दिव्यभोजन जो कि बेर ( फल ) के बराबर होता है, करते हैं। इनको मल, नूत्रकी बाधा व बीमारी आदि नहीं होती । स्त्री और पुरुष दोनों एक साथ एक ही उदरसे उत्पन्न होते हैं और बड़े होनेपर पति पत्नीके समान व्यवहार भी करते हैं परन्तु उस समय भाई बहिनके भावकी कल्पना न होनेसे दोष नहीं समझा जाता । वस्त्र, आभूषण आदि भोगोपभोगकी सामिग्री इन्हें कल्पवृक्षोंसे प्राप्त होती है। कल्पवृक्ष पृथ्वीके परमाणुओंके होते हैं, वनस्पतिकी जातिके नहीं होते। इनके दश भेद होते हैं। और दशों तरह के वृक्षोंसे मनुष्योंको भोगोपभोगकी सामिग्री जैसे-वस्त्र, आभूषण, भोजन आदि प्राप्त होते रहते हैं। इनके यहां संतान (सिर्फ एक पुत्र और एक पुत्री एकसाथ) उत्पन्न होते ही माता पिता दोनों मर जाते हैं। बालक स्वयं अपने अंगूठों को चूस चूस कर उन पचास दिनोंमें जवान होजाते हैं। स्त्री पुरुष दोनों साथ मरते हैं और मरते समय स्त्रीको छींक और
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