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प्रस्तावनाः ।
[ ३३ जैनधर्मका परम उत्कर्ष रहा था । ३) और वह काल जिसमें भारतवर्षमें यवन लोगोंका अधिकार होगया था और जैनधर्मका वह प्रभाव घट चला था अर्थातृ तेरहवीं शताब्दि से लेकर आजतकका इतिहास | इन विभागोंके प्रथम भागके वर्णन करनेको हमारे पास केवल जैन शास्त्र हैं तथापि कुछ२ सहायता हिंदुओं के शास्त्रोंसे भी मिलती है।
दूसरे भाग के इतिहासका आधार हमें जैन और हिंदू साहित्यके अतिरिक्त बौद्धोंक ग्रन्थोंमें, राज्यनीतिके ग्रन्थोंमें, तत्कालीन साधारण साहित्य में, शिलालेख मुद्रादिमें एवं विदेशी पर्यटकोंके भ्रमण वृत्तांतों में मिलता है। तीसरे भागका आधार उपर्युक्त के अतिरिक्त यूरोपीय विद्वानोंके इतिहास एवं मुसलमान ग्रन्थकारोंके इतिहासों में प्राप्त है ।
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इस प्रकार जैन इतिहासके इन सर्व कालोंका पूर्ण विवरण उपस्थित करना परमावश्यक है । इस ही आवश्यक्ताको ध्यान करके श्री भा० दि० जैन परिषदने एक ऐसा ही विशद जैन इतिहास निर्माण करनेका कार्य श्रीयुत हीरालालजी एम० ए० की अध्यक्षता में प्रारंभ कराया था । उसकी पूर्ति इस आवश्यक्ताको पूर्ण कर देती किन्तु खेद है कि प्रो० सा० अन्य आवश्यक कार्योंमें व्यस्त रहनेके कारण उसको अभीतक नहीं लिख सके हैं । इसलिये उस प्रस्तावके अनुरूप इस संक्षिप्त इति - हासके लिखने का साहस हमने किया; जिसमें हम भगवान महावीर के सर्व कल्याणकारी दिव्य धर्म-प्रभावसे ही कार्यकारी हुये हैं । अथ च इस संक्षिप्त इतिहासका प्रथम भाग पाठकोंको समर्पित है । द्वितीय एवं अन्य भागमें शेषके जैन कालोका विवरण पाठकों के समक्ष रक्खा
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