________________
प्रस्तावना |
ܙܝ
[ ३१
इतिहासकी आवश्यक्ता ।
66
किसी x बच्चेकी शिक्षा तबतक पूर्ण नहीं समझी जा सकतीजबतक कि उसको उस जाति और उस समाजके इतिहासका ज्ञान न हो - जिसके अन्दर वह उत्पन्न हुआ है और जिसमें रहकर उसे अपने मानुषी कर्तव्योंको पूरा करना है। प्रत्येक व्यक्ति जो संसारमें जन्म लेता है वह बहुतसी प्रवृत्तियां अपने माता पिता और प्राचीन पूर्वजों से दायमें पाता है । जिस प्रकार प्रत्येक मनुष्य अपने पूर्वजोंका प्रतिनिधि है उसी प्रकार प्रत्येक मानुषी समूह अपने जातीय पूर्वजोंका प्रतिनिधि है। कोई समाज अपनी वर्तमान अवस्थाको पूर्णरूप से नहीं जान सकता जबतक उसे यह ज्ञान न हो कि वह किन किन अवस्थाओंसे होकर यहांतक पहुंचा है ।
समाजकी उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि उसे अपनी सब अवस्थाओं का ज्ञान हो । प्रत्येक मनुष्य और प्रत्येक मानव समुदाय अपने समाजकी वर्तमान अवस्था में प्रभावित होता है । वर्तमान अवस्थाएं भूतकालीन अवस्थाओंका परिणाम हुआ करती हैं। ऐसी अवस्था में प्रत्येक मानव समुदायकी उन्नतिके लिये आवश्यक है कि उसको अपनी जातिके इतिहासको अच्छी जानकारी न हो, वह अपनी जातिकी उन्नति और सुधारक क्षेत्रमें कोई यथोचित पग उठाने के योग्य नहीं हो सकता 1
जैन समाज अपनी वर्तमान अधोदशासे निकलने के प्रयत्न में प्रयासशील है, परन्तु उसके पास अपने पूर्वजोंका एक क्रमबद्ध इतिहास ★ पूर्व मग १ पृ० २७ ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com