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संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग !
न होनेके कारण वह अपने इस शुभ प्रयासमें उतनी सफल - मनोरथ नहीं है जितनी कि होनेकी आशा थी। अपने पूर्वजोंकी उन्नत दशा और अपनी वर्तमानकालीन अवनत दशा एवं उनके कारणोंको जब हम ध्यान में लायेंगे तब ही यथार्थ उन्नतिकी ओर पग बढ़ा सकेंगे । हमारे अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीरने हमको २४६८ वर्ष पहिले इस विषय में पूर्ण सावधान कर दिया था । अर्थात् जिस जिस आत्माको अपना, लोकका और भूत भविष्यत वर्तमानका ध्यान नहीं है वह सत्यमार्गका अनुशीलन नहीं कर सकता - अपने सार्वधर्म की उपयोगिता जगतके निकट प्रगट नहीं कर सकता। इसलिए प्रत्येक जैनीका कर्तव्य है कि वह अपनी जातिमें वास्तविकरीत्या कर्तव्यपरायण होनेके लिए जैन इतिहासका ज्ञान रक्खे | और जैन समाज में एक वास्तविक इतिहासके अभावकी पूर्ति के लिए इस इतिहासके लिखनेका प्रयत्न है |
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जैन इतिहासके कालविभाग और ऐतिहामिक आधार । पूर्वोक्त वर्णनसे हमें ज्ञात होया है कि जैन इतिहास मुख्यतया तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है अर्थात् - ( १ ) इतिहासकारोंद्वारा स्वीकृत कालके पहिलेका इतिहास अर्थात् २५०० वर्ष से पहलेका इतिहास । (२) उस समयका इतिहास जिस समय भगवान महावीर स्वामीने अपने तीर्थमार्गका प्रसार करके धर्मका प्रतिपादन किया था और उनके शिष्योंने उनके पश्चात् उसका प्रचार दिग्दिगांतरोंमें फैलाया था अर्थात् ईसाके जन्मसे ६०० या ७०० वर्ष पहिलेसे लेकर ईसाकी तेरहवीं शताब्दि तकका इतिहास, जिस कालमें
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