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प्रस्तावना
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बदला लेने में सहायक जान वह उसके इस दुष्टतम कार्यमें योग देने लगा । इसी के अनुसार परवत राजा सागरकी पुरी में गया। वहां इस देव - जिसका नाम महाकाल थाने अनेक प्रकारके मरी रोग फैला दिए और एक रोगके शांत होने पर अन्य प्रकारका फैला देता था । इससे वहांके मनुष्योंको विश्वास होगया कि यह देवी प्रकोप है और परवतकी सम्मत्यनुसार पशुयज्ञ करना ही निश्चित किया गया ।
प्रथम तो वे लोग बहुत भड़के परन्तु रोगके प्रकोप और परवतके अनेकों विम्मयोत्पादक कृत्योंने उन्हें ऐसा करनेको बाध्य किया । प्रथम केवल मांस ही अर्पण किया गया और उससे लाभ भी मालूम हुआ । जिस बात का प्रचार परवत न्यायकी तलवार न कर सका, उसीको एक देवकी सहायता से पूर्णरूपमें प्रचार करने लगा। धीरे २ बहुतसे मनुष्य उसके मतानुयायी हो गए और अंत में एक अनमेघ यज्ञ - परवतके कथनानुसार कि जिस जीवका बलिदान किया जाता है उसको दुःख नहीं होता; किन्तु वह स्वर्गको प्राप्त होता है - कराया गया। यहां भी ज्यों ही बकरे की बलि चढाई गई त्यों ही महाकालकी सहायता से एक मायावी विमानमें एक चकग बैठा हुआ स्वर्गको जाता दिखाई पड़ा. जिससे सागर के समस्त राज्यको उसपर विश्वास हो गया ।
अजमेधके पश्चात् गोमेध किया गया, फिर अश्वमेध और अन्तमें प्रभावनापूर्ण नग्मेघ किया गया । प्रत्येक अवस्थामें बलिदान किया हुआ पशु वा मनुष्य विमानारोहित स्वर्गकी ओर जाता दिखाई पड़ा । जैसे २ समय बीतता गया वैसे २ इसके प्रतिकारक मनुष्योंका अभाव
होगया और अन्तमें पशु यज्ञ स्वर्गका द्वार ही माना जाने लगा ।
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