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.....प्रस्तावना | ..
[२५ ऐसे धर्मसे लिया होगा जो उसे वैज्ञानिक ढङ्गपर वर्णित करता हो।
भारतवर्षमें हिंदूधर्मके अतिरिक्त उसकी समकोटिमें जैनधर्म भी प्राचीन माना गया है। अतएव संभव है कि वैदिक ऋषियोंने अपने ज्ञानका आधार जैनधर्मसे लिया हो। इसी व्याख्याकी पुष्टि कर्मोंद्वारा आवागमनके सिद्धांतको विचारपूर्वक मनन करनेसे होती है । आवागमनका सिद्धांत वेदोंके कर्ताओंको अवश्य विदित था, कारण कि ऋग्वेदमें उन्होंने जीवका जल व वनस्पति आदिमें जन्म लेना लिखा है। (See 'Indian myth and legens' by D. A. Macken. jie P. 116.) इसके अतिरिक्त वेदोंके कथानकके गुप्त सैद्धांतिक विज्ञान ( Philosophy ) से भी इसकी पुष्टि होती है ।
आर्य और अनार्य । वेदोंके विषयमें प्रसंगवश जो उपर्युक्त वर्णन किया गया है, उसमें आर्य और अनार्योका उल्लेख आया है। जैन धर्ममें मनुष्य जाति मूलतः एक मानी गई है; परन्तु कर्मकी अपेक्षासे उसे दो विभागोंमें विभक्त किया है, अर्थात् आर्य और म्लेच्छ ।
आर्य उन मनुष्यों को कहते हैं जो उत्कृष्ट कुलीन और धर्ममें स्त रहनेवाले हैं। __म्लेच्छ उन अनार्य मनुष्योंको कहते हैं जो असभ्य और हिंसोपजीवी होते हैं।
भारतवर्ष में आर्य और म्लेच्छ दोनों ही प्रकारके मनुष्य सदैवसे हैं। मारतवर्षके मूल रहाकू द्राविड़ जातिके मनुष्य अनार्य और असभ्य कहे जाते हैं, पातु हम एक प्रख्यात विद्वान् मेजर जनरल फरलांग
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