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साक्षी जैन इतिहास प्रथम भाग |
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होता है । आधुनिक इतिहासकार के अनुसार वर्तमान भारतीय जनता जगतकी सभी बड़ी २ जातियोंका मिश्रण है । उसका बड़ा भाग निःसन्देह आर्यवंशसे है । परन्तु उसमें द्राविड़, तातारी तथा अग्च जाति कुछ अंश उस जाति के भी सम्मिलित हैं जिसको नीग्रो या हब्शी कहा जाता है ।
और
उत्तरीय भारत के - विशेषतया पञ्जाब, संयुक्त प्रान्त, राजपूताना, गुजरात, बंगाल और विहार के अधिवास अधिकतर आर्यवंशके हैं। उत्तर पश्चिममें कुछ अंश अरब और तातारी मूलके हैं । उत्तर पूर्व में कुछ रक्त मंगोलियन जातिका है। दक्षिणमें अधिकतर भाग द्राविड़ जातिका है और मालाबार सागर-तटपर एक विशेष संख्या अरबी वंशके मुसलमानोंकी है। मध्य भारत तथा दक्षिणमें और विन्ध्याचलके भागों में और नीलगिरी पर्वतके प्रदेशमें वे जातियां बसती हैं जिनका भारतकी आदिम निवासी कहा जाता है, जैसे कि भील और गोष्ट आदि *
भारतकी भाषायें ।
प्राचीन समयमें उत्तर भारतकी क्या भाषा थी, इसका सप्रमाणिक उत्तर देना जरा कठिन है, परन्तु जैन धर्मानुसार हम कह सकते हैं कि वहांकी भाषा प्राकृत थी, जिसमें जैनियोंके अत्यन्त प्राचीन शास्त्र पूर्व संकलित थे । आधुनिक इतिहासकार उत्तर भारतकी प्राचीन भाषाको निर्धारित करने में अपनेको असमर्थ समझता है और वह कहता है कि मदरास प्रांतकी भाषायें द्राविड़ श्रोतसे हैं । सम्भव है कि आर्योंके समय उस श्रोतकी भाषायें उत्तरीय भारतमें भी प्रचलित
* ला लाजपतराय का "भारतका इतिहास भाग १ पृष्ठ २२.
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