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प्रस्तावना
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आर्यावर्त ( भारत ) से अलग होते भी पहिले उसके अन्तर्गत रहा ।" इसी विषय में मि० नारायण भवनराव पावगीने अपनी "आर्यन क्रेडल इन दी सप्त सिंधूज" नामक पुस्तकमें लिखा है कि “आर्य जातियां विदेशोंसे न आकर यहीं सरस्वती नदी आदिके पास उत्पन्न हुई और इसे लाख पचास हजार वर्षसे कम नहीं हुए।"
अतः यह प्रगट है कि आर्योंका मूल निवास भारतवर्ष था, और वे यहींसे जाकर अन्य विदेशोंमें बसे थे। इसलिए जैन दृष्टिसे वर्तमानके यूरोपादि छहों द्वीपोंको आर्यावर्त ( आर्यखण्ड) के अंतर्गत • मानना यथार्थ प्रगट होता है । इस व्याख्याकी पुष्टि विविध देशोंके - मान्य ग्रन्थोंमें "आर्य" शब्द का उल्लेख मिलनेसे भी होती है । जैसे पारसियोंके अवस्था नामक ग्रन्थमें 'ऐर्य' शब्द व्यवहृत हुआ है जिसके अर्थ अर्य और आर्य प्रगट किये गये हैं । यूनानी लोगोंने भी आर्य देशका उल्लेख किया है । एवं यूरोपकी करीब २ सब ही भाषाओं में हल वा कृषि वाचकं शब्द अर् धातुसे निकलते हैं जिस 'अर्' धातु से पाश्चात्य संस्कृतका अर्थ (आर्य ) शब्द बना प्रगट करते हैं ।
अब जब कि हम आयको भारतवर्षका मूल निवासी पाते हैं तब जैनियों को भी भारतवर्षका आदि निवासी मानना यथार्थ हैं, क्योंकि जैनी जिस दर्शनके उपासक हैं वह आर्य दर्शन है ।
जैन दर्शन आर्य दर्शन है और जैनी आर्य हैं
जैनधर्मको आर्यदर्शन. प्रमाणित करनेमें स्वयं हिन्दू शास्त्र प्रमाणभूत है । उपनिषिधों में एक दृश्य वर्णित है कि ब्राह्मण, बंशज नारद
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