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प्रस्तावना ।।...
[१५.
सिद्धान्त वैज्ञानिक सत्य हैं।* सत्य अनादि निधन है और स्वयं प्रमाणित है। इसलिये जैन धर्म अनादि निधन है और स्वयं प्रमाणभृत सर्वज्ञ वाक्य है । वह अनादिकालसे अपने इसी अखण्ड. एवं पूर्ण रूपमें है। इसलिए जैनियोंकी दृष्टिसे स्वयं भारतवर्षके इतिहासके प्रारम्भ होने का समय इतना प्राचीन है कि उसकी गणना गिनतीके अक्षरोंमें नहीं की जासकती !
तिसपर हिन्दुओंके प्रामाणिक ग्रंथ वेद 'जिनके विषयमें हम पहिले भी किंचित् लिख चुके हैं । ऐतिहासिक कालसे पहिलेके बने हुए कहे जाते हैं। आधुनिक खोजने उनको १५००-४००० वर्ष ईसाके पूर्वका संकलित अनुमान किया है और बतलाया है कि वह ऐतिहासिक कालके पहिलेके वृत्तांतोंको जाननेके लिए अतीव मूल्यवान
और आवश्यक हैं । हम पहिले देख चुके हैं कि जैनधर्मके इस युगकालीन संस्थापक श्री ऋषभनाथजी वेदोंके बननेसे बहुत पहले अवतीर्ण हुए थे। इसलिए इस तरह भी जैनधर्मकी प्राचीनता सर्व प्राचीन प्रमाणित होती है और भारतवर्षमें जैनधर्मकी सर्वोपरि प्रधानता प्रगट होजाती है। इस विषयमें जैन दृष्टिसे वर्णन हम आगे करेंगे।
इसके अतिरिक्त इस विषयकी पुष्टि इस प्रकार भी होती है। प्रख्यात जैन फिलासोफर मिल चम्पतरायजी जैनने अपने ‘असहमत! संगम' में संसारमें प्रचलित समस्त प्राचीन धर्मोके सैद्धांतिक तत्वों में
*इस व्याख्याकी यथार्थताके लिए मि० चम्पसरायजी जैन बारिस्टरकी Key of Knowledge, असहमतसङ्गम आदि एवं जैन आर्ष ग्रंथोंका अवलोकन करना चाहिए ।
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