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संक्षिप्त जैम इतिहास प्रथम माग ।
बौद्धोंके शास्त्रों में भी जैनियों का उल्लेख “निमंठ" रूपमें हुबा है। ईसासे पूर्व ७ वीं शताब्दिमें प्रचलित बौद्धजातक कथाओंमें "घटकथा" में नम जैनमुनिका उल्लेख है ! इसी तरह मज्झिमनिकाय, संयुत्त निकाय ( २, ३, १०, ७), महावग ( ८, १५), चुल्लवमा (८,२०,३) आदि ग्रन्थों में है। The Dialouges of Buddha नामक पुस्तकमें म० बुद्ध के समयमें प्रचलित विविध मतोंके साधुओंके चारित्र-क्रियाओंका उल्लेख है। उनमें एकमें दिगम्बर जैन मुनिओंकी क्रियायें दी हुई हैं। ऐसी अवस्था में इस तरह भी उस समय अर्थात् म० बुद्धसे पहले जैनधर्मका अस्तित्व प्रमाणित होता है। फिर नहीं बोद्ध ग्रन्थों में उस समयके अन्यमतोका उल्लेख किया है, वहां आजीवकोंके बाद ही निगन्थों (जैनियों) को गिनाया है। यदि उस समय ही जैनधर्मकी उत्पत्ति हुई होती तो उसकी गणना इस प्रकार नहीं की जाती, और नहीं ही बौद्ध शास्त्रोंमें जैनधर्मके संस्थापक ऋषभदेव कहे गये हों। जैसे कि 'न्यायबिन्दु' आदि ग्रन्थों में बताया गया है। अतएव बौद्ध शास्त्रोंसे भी जैनधर्मका अस्तित्व म० बुद्धसं बहुत पहलेका प्रमाणित होता है, जैसा हिन्दू शास्त्रोंसे प्रा.ट है।
भारतीय पुरातत्वकी साक्षी भी जैनधर्मको अति प्राचीन ही प्रमाणित करती है। भारतीय पुरातत्वमें हरप्पा और मोहनजोदडोंका पुरातत्व सर्व प्राचीन हैं। इन दोनों स्थानोंसे लगभग पांच हजार वर्ष पुरानी मुद्रायें और मूर्तिये उपलब्ध हुई हैं। उनमेस कई दिगम्बर जैन मेषमें हैं और कई ध्यानमुद्रामय खड़गासन भी है।' विद्वानोंने उन्हें
मावान पार्थनाथ' की भूमिका देखो ।
१-पारशल सा०, मोहन जो-दडो (लंदन) माम १ ३०-३५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com