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खण्ड १ | जीवन ज्योति में भर देती है, वे जीवन भर स्थायी रहते हैं । इसी कारण वे अपनी पुत्री सज्जनकुमारी को धर्म-सम्बन्धी शुभ संस्कार देने में सदा सजग-सावधान रहतीं।
जब सज्जनकुमारी की अवस्था मात्र ३ वर्ष की ही थी, तभी से माता अपनी प्रिय पुत्री को ब्राह्ममुहूर्त में अपने साथ ही उठातीं और मुहपत्ति लगाकर सामायिक करवाती । सामायिक के दौरान ही माला, धार्मिक पाठ और थोकड़े याद करवातीं । वे स्वयं भी दिन में तीन सामायिक करती थीं । सामायिक के बाद नगर में विराजमान संत-सतियों के दर्शन-वन्दन को जाती तो साथ में अपनी पुत्री को भी ले जातीं। जयपुर में सदा से ही साधु-साध्वियों का निवास और आवागमन बराबर बना रहता है, वर्तमान में वही स्थिति है । अतः उन्हें सहज ही संत-सतियों के दर्शन-वन्दन का लाभ प्रतिदिन ही मिल जाता था।
इस प्रकार माता अपनी पुत्री (चरितनायिका) के हृदय में धार्मिक संस्कारों की जड़ जमा रही थी। उन्हीं संस्कारों का परिणाम सुदृढ़ चारित्र सम्पन्न सज्जनश्रीजी म० के रूप में आज हमारे सामने हैं।
व्यावहारिक शिक्षा-आपकी व्यावहारिक शिक्षा का प्रारम्भ आपश्री के पिता श्रीगुलाबचन्दजी सा० द्वारा हुआ।
उन दिनों जयपुर में जवाहरात के चार-पाँच ही शोरूम थे। उनमें श्रीगुलाबचन्दजी का शोरूम अधिक प्रसिद्ध था। प्रसिद्धि का कारण था आपकी प्रामाणिकता, नैतिकता और शालीनतापूर्ण शिष्टमिष्ट व्यवहार । उनके व्यवहार और वाणी में अभिजात्यता थी। उनका संपर्क अनेक राजपरिवारों व बड़े ब्रिटिश अधिकारियों के साथ भी था। इसी कारण विदेशी लोग भी खिचे चले आते थे । साथ ही व्यापार भी दिनोंदिन प्रगति पथ पर बढ़ रहा था, लाभ भी हो रहा था।
सज्जनकुमारी पिता की लाड़ली तो थी ही । अभी उसकी चार वर्ष की आयु ही थी; किन्तु पिताश्री उसे अपने साथ दूकान पर ले जाते । वहां वह पिताश्री और फोरेनर्स (विदेशी व्यक्ति) के मध्य हुआ वार्तालाप सुनती । विदेशी तो अंग्रेजी ही बोलते थे और गुलाबचन्दजी भी उनसे अंग्रेजी में ही बात करते थे । बालसुलभ जिज्ञासावश सज्जनकुमारी उस वार्तालाप को ध्यान से सुनती, समझने का प्रयास करती और फोरेनर्स के जाने के बाद पिताश्री से पूछकर उस शब्दों का ज्ञान प्राप्त करती । इस प्रकार अंग्रेजी शब्दों का ज्ञान भी सज्जनकुमारी का बढ़ने लगा। कभी अपने मुनीमजी से . भी जिज्ञासा शांत करती । मुनीमजी की इंगलिश काफी अच्छी थी । जब वे सज्जनकुमारी के मुख से इंगलिश शब्दों का स्पष्ट और शुद्ध उच्चारण सुनते तो बहुत प्रसन्न होते और उन शब्दों का भाव (sense) बड़े प्रेम से समझा देते।
___ सज्जनकुमारी की तीव्र बुद्धि से पिता श्री गुलाबचन्द जी सा. बहुत प्रभावित हुए । यद्यपि उस समय लड़कियों की उचित शिक्षा का विशेष प्रचलन नहीं था; किन्तु पिता ने अपनी पुत्री को शिक्षा दिलाने का निर्णय कर लिया।
__उस समय स्थिति यह थी कि लड़कों के लिए तो हाईस्कूल थे; किन्तु लड़कियों के लिए राजकीय प्राइमरी और मिडिल स्कूल ही थे। और जो स्कूल थे भी उनमें उच्चकुलीन लोग अपनी पुत्रियों को भेजना उचित नहीं समझते थे। ..
कई प्राइवेट सामाजिक स्कूल भी थे
(१) लीलाधरजी के उपाश्रय में जैन श्वेताम्बर मिडिल स्कूल-इसमें ओसवाल समाज तथा अन्य समाजों के लड़के पढ़ते थे। यह वर्तमान में हाईस्कूल है।
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