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खण्ड १ | जीवन ज्योति
जन्म एवं शैशव जन्म-गर्भकाल पूरा होने पर श्रीमती मेहताबदेवी ने एक बालिका को इसी प्रकार जन्म दिया, जैसे प्राची दिशा सूर्य को जन्म देती है, जिसके प्रकाश से जन-जन चेतनाशील हो जाता है । वह दिन था विक्रम संवत् १६६५ की वैशाखी पूर्णिमा।
भारत के धार्मिक इतिहास में इस पूर्णिमा का भी विशेष महत्व है। करुणा के प्रसारक तथागतबुद्ध का जन्म भी वैशाखी पूर्णिमा को हुआ, उन्हें बोधि भी इसी दिन प्राप्त हुई और इसी दिन उनका शरीर भी छूटा । इसी कारण यह पूर्णिमा बुद्ध जयन्ती के नाम से भारत, चीन, जापान आदि एशिया खण्ड के अनेक देशों में प्रसिद्ध है।
नवजात पुत्री जिसका नाम माता-पिता ने सज्जनकुमारी रखा और आज सज्जनश्री म० के रूप में हैं, उनमें भी करुणा, क्षमा, आदि अनेक सद्गुण साकार रूप में परिलक्षित होते हैं ।
पुत्री के जन्म से माता-पिता के हृदय में जो अंधकार था, वह मिट गया, उसका स्थान प्रकाश ने ले लिया, उनके मन में मोद भर गया । सारे परिवार में खुशियाँ छा गईं।
लेकिन मानव-मन शंकालु भी तो है । आप से पहले जितनी भी सन्तानें हुईं वे सभी एक वर्ष की ही मेहमान रहीं, अतः पारिवारिक जनों, विशेष रूप से परिवार की बुजुर्ग स्त्रियों के मन में इस नवजात पुत्री के अमंगल की आशंका भी उठ खडी हुईं, उन्हें इसके जीवन की चिन्ता लग गई।
यद्यपि यह अकाट्य सत्य है कि कोई भी अन्य व्यक्ति किसी भी व्यक्ति के आयुष्य को एक क्षण भी नहीं बढ़ा सकता और न स्वयं व्यक्ति यहाँ तक कि तीर्थकर भी नहीं।
भगवान महावीर का अन्त समय समीप था । उस समय कक्र देवराज उनके चरणों में उपस्थित हआ, करबद्ध होकर प्रार्थना की उसने-भगवन् ! आपकी जन्म राशि पर भस्मक ग्रह चल रहा है । यदि इसी समय आपने शरीर त्याग दिया तो आपके शासन की बहुत अवनति होगी । दो हजार वर्ष तक इसका प्रभाव रहेगा । अतः आप आयुष्य के कुछ क्षण बढ़ा लें तब तक यह भस्मक ग्रह उतर जायेगा, आप सर्वसमर्थ हैं, आयु के कुछ क्षण बढ़ा सकते हैं।
. इस पर भगवान महावीर ने फरमाया-हे इन्द्र ! ऐसा न कभी हुआ है और न होगा ही आयुष्य का एक क्षण भी बढ़ाया नहीं जा सकता।
इस तथ्य को जानते-समझते हुए भी मानव यही सोचता है कि कुछ टोटके करके नवजात बालकबालिकाओं को दीर्घायुष्य बनाया जा सकता है । विपाक सूत्र में ऐसे टोटकों का उल्लेख मिलता है । यथाशकट को शकट (गाड़ी) के नीचे से निकाला गया था।
घर की बुजुर्ग स्त्रियों ने भी ऐसा ही एक टोटका किया। सोचा-इस बार पुत्री को नमक से तोलकर लिया जाय । ऐसा ही किया भी गया । भावना यही रही कि इस प्रकार करने पुत्री दीर्घायु वाली होगी।
शैशव-क्रीड़ाएँ-बालिका माता-पिता तथा परिवारीजनों को हर्षित करती हुई दिनोंदिन बढ़ने लगी । उसकी शिशु-क्रीड़ाओं को देख-देखकर सभी हर्षित होते।
मिल्टन (Milton) ने अपनी एक रचना में लिखा हैCrawling of child shows its future. (शिशु की क्रीड़ाएँ उसके भावीजीवन की संकेत होती है।) ऐसी ही एक लोकोक्ति है-पूत के पाँव पालने में दिखाई देते हैं।
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