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खण्ड १ | जीवन ज्योति
स्वर-विशेषता-प्रकृति ने आपको भले ही 'लूनिया' गोत्र में अवतरित किया किंतु आपका हृदय तो मिश्री-सा मीठा, और स्वर तो शहद से भी अधिक मधुर रसवाही था। प्रभुभक्ति के गीतों में आपको विशेष रस आता था। स्वर भी महीन था। इन गुणों के कारण समाज में आपका अग्रगण्य स्थान था। धार्मिक उदारता के कारण जयपुर, अजमेर, सांगानेर आदि में जब भी पूजा (भगवद्पूजा) होती आपका बुलाया जाता, आप भी सहर्ष और सोत्साह सम्मिलित होते और पूजा-गायन करते । गायकों में आपका अग्रगण्य स्थान था।
रचनायें-आपकी कवित्वशक्ति अद्भुत थी । आपने प्रभुस्तवन, उपदेशी पद, गुरुभक्ति पद-आदि सैकड़ों की संख्या में रचे । जो प्रायः सभी प्रकाशित हो चुके हैं । इनमें से जानपने के पच्चीस बोल, तेरहद्वार प्रश्नोत्तर, तत्वाध, श्रावक आराधना (पद्यमय), अर्थसहित प्रतिक्रमण आदि अब भी उपलब्ध हैं।
धार्मिक शिक्षा-प्रसार-आप भलीभाँति जानते थे कि बाल्यावस्था में दिये गये संस्कार जीवन भर स्थायी रहते हैं। बच्चों को धार्मिक संस्कार बचपन में ही मिलें, इस दृष्टिकोण से आपने 'तेरापंथ स्कल' की स्थापना अपने सद्प्रयासों से करवाई । राजस्थान में बच्चों की शिक्षा के लिए इस प्रकार का प्रयास आपके विद्या प्रेम और उर्वर कल्पनाशील मानस का प्रतीक है। उस समय यह 'प्राइमरी स्कूल' था जो प्रगति करता हआ अब 'हाईस्कूल' बन गया है।
जैसे आप धर्मनिष्ठ और सदाचारी थे वैसी ही धर्मनिष्ठा सुशीला जीवन-संगिनी की आपको प्राप्ति हई थी। यह भी एक महान पुण्य संयोग की समझना चाहिए । आपकी धर्मपत्नी का नाम मेहताब देवी था। मेहताब कहते हैं- चन्द्रमा को । चन्द्रमा के समान ही आपका स्वभाव शीतल और सभी जनों के लिए सुखद था।
मेहताबदेवो व्रत-नियम-त्याग-तप आदि का दृढ़तापूर्वक पालन करती थीं। रात्रि-भोजन एवं जमीकन्द का सर्वथा त्याग था । यावज्जीवन के लिए सिर्फ २५ प्रकार के फल और सब्जियों का नियम था। शेष का त्याग था। विभिन्न प्रकार के तप करती रहती थीं।
__ आपका धार्मिक ज्ञान भी प्रशंसनीय था । जानपने के २५ बोल, चर्चा के १३ द्वार, बाबन बोल, गत्यागति, अल्पबहुत्व, पांचज्ञान तेतीसा का स्तोक, छह लेश्या, नियण्ठा खण्डाजोणि (क्षेत्र समास) इत्यादि कई स्तोक (थोकड़े) तथा दण्डक संग्रहणी आदि के कई बड़े-बड़े स्तवन, नव बाड़ व आराधना की ढालें आपको कण्ठस्थ थीं तथा साथ ही इनका विशिष्ट ज्ञान भी था, जिसका चिन्तन-मनन-पारायण आप सामायिक साधना के दौरान किया करती थीं।
किन्तु जिस प्रकार चम्पा बेल इतनी सुन्दर, सुगन्धित होते हुए भी फलहीन होती है । यह प्रकृति का एक क र मजाक ही समझना चाहिए। उसी प्रकार मेहताब देवी की जीवन बेल में भी एक सन्तान-फल का अभाव खटकता था । इस अभाव की पूर्ति के लिए दोनों पति-पत्नी चिन्तित रहते थे, किन्तु वह अभाव, अभाव ही बना रहता।
ऐसा भी नहीं था कि मेहताबदेवी बाँझ हो, उसके सन्तान होती ही न हो । सन्तान तो होती थी किन्तु एक वर्ष की होते-होते काल के गाल में समा जाती। भरी गोद फिर सूनी हो जाती। खिली लता फिर मुझ जाती, वसन्त आने से पहले काल का प्रहार हो जाता । माता-पिता के हृदय में विषाद की गहरी रेखा खिच जातीं। जिस मातृत्व का सपना प्रत्येक स्त्री संजोती है, वह साकार होता और काल के प्रहार से कल्पना-महल के समान बिखर जाता।
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